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विनय गुण वर्णन
टोकार्थ-विशेषकर ले जाये जाय याने दूर किये जा सकें अथवा नष्ट किये जा सके, आठ प्रकार के कर्म जिसके द्वारा, वह विनय कहलाता है । ऐसी समय संबंधी याने जिनसिद्धान्त की निरुक्ति है। ___ क्योंकि चातुरंत (चार गति के कारण ) संसार का विनाश के लिए अष्ट प्रकार का कर्म दूर करता है । इससे संसार को विलीन करने वाले विद्वान उसे विनय कहते हैं ।
वह दर्शन विनय, ज्ञान विनय, चारित्र विनय, तप विनय और औपचारिक विनय, इन भेदों से पांच प्रकार का है।
दर्शन में, ज्ञान में चारित्र में, तप में और औपचारिक इस भांति पांच प्रकार का विनय कहा हुआ है।
द्रव्यादि पदार्थ की श्रद्धा करते, दर्शन विनय कहलाता है। उनका ज्ञान संपादन करने से ज्ञान विनय होता है । क्रिया करने से चारित्र विनय होता है और सम्यक् प्रकार से तप करने से तप विनय कहा जाता है । ___ औपचारिक विनय संक्षेप में दो प्रकार का है:-एक प्रतिरूप योगयुजन और दूसरा अनाशातना विनय ।
प्रतिरूप विनय पुनः तीन प्रकार का है:-कायिक, वाचिक और मानसिक । कायिक आठ प्रकार का है। वाचिक चार प्रकार का है और मानसिक दो प्रकार का है-उसकी प्ररूपणा इस प्रकार है।
कायिक विनय के आठ भेद इस प्रकार हैं-गुणवान मनुष्य के आते ही उठकर खड़े हो जाना, वह अभ्युत्थान, उनके सन्मुख हाथ जोड़कर खड़े रहना वह अंजलि, उनको आसन देना