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वृद्धानुगत्व गुण पर
तब वह भय से विह्वल होकर बोला कि-उस क्रूर-कर्मी का तो मैं नाम भी उच्चारण नहीं कर सकता । तब राजकुमार बोला कि- तू हमारे सन्मुख लेश मात्र भी भय न रख । हे भद्र ! अग्नि शब्द बोलने से मुख में दाह नहीं उत्पन्न होता । तब बहुत आग्रह होता जानकर स्पर्शन दीनता पूर्वक बोला कि-उस पापी शिरोमणि का नाम संतोष है।
तब राजकुमार विचार करने लगा कि-इससे अब प्रभाव का लाया हुआ सम्पूर्ण वृत्तान्त घटित हो जाता है। पश्चात् एक दिन स्पर्शन ने सिद्ध योगी की भांति नगर में प्रवेश किया । तब बालकुमार तो उसके अत्यंत वशीभूत हो गया किन्तु मनीषीकुमार नहीं हुआ। उन्होंने यह सब बृत्तान्त अपनी अपनी माताओं को कहा, तो अकुशला बोलो कि हे पुत्र ! सब ठीक हुआ है। शुभसुन्दरी अपने पुत्र को मधुर वाक्यों से कहने लगी कि- हे वत्स! इस पापमित्र के साथ सम्बन्ध रखना अच्छा नहीं। __वह बोला कि-हे माता! तेरी बात सत्य है, परन्तु क्या करू? क्योंकि अपनाये हुए को अकारण छोड़ना योग्य नहीं है। ___शुभसुन्दरी बोली कि- हे पुत्र! तेरी पवित्र बुद्धि को धन्य है, तेरी नतवात्सल्यता को धन्य है और तेरी नीति निपुणता को भी धन्य है । क्योंकि- सजन पुरुष सदोष वस्तु को भी अकारण नहीं तजते। इस विषय में विवाह करके गृहवास में रहते तीर्थकर ही उदाहरण है । परन्तु जो पुरुष अवसर प्राप्त होने पर भी मूर्ख बनकर सदोष का त्याग नहीं करते, उनका विनाश होने में संशय नहीं।
राजा कर्मविलास भी स्त्रियों के मुख से उक्त बात जानकर मनीषी पर प्रसन्न हुआ और बाल के उपर रुष्ट हुआ। बालकुमार