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वृद्धानुगत्व गुण वर्णन
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सत्य तत्व रूप कसौटी से प्रकटा हुआ और विवेक रूप प्रकाश से वृद्धि पाया हुआ ज्ञानमय तत्व जिन्होंने प्राप्त किया होवे, उनको पंडित जन वृद्ध मानते हैं।
प्रत्यासत्ति समायातै-विषयः स्वान्तरजकैः । न धैर्य स्खलितं येषां, ते वृद्धाः परिकीर्तिताः ।। ३ ।। प्राप्त हुए मनोहर विषयों से जिन का धैर्य न टूटे वे वृद्ध माने जाते हैं।
नहि स्वप्नेऽपि सञ्जाता, येषां सवृत्तवाच्यता । यौवनेऽपि मता वृद्धा-स्ते धन्याः शीलशालिनः ॥ ४ ॥ जिनके सदाचार के सम्बन्ध में स्वप्न में भी कोई विरुद्ध न बोल सका हो वे भाग्यशाली पुरुषों को यौवन में होते भी सुशीलजन वृद्ध मानते हैं । किंच-प्रायः शरीरशैथिल्यात्, स्यात् स्वस्था मतिरंगिनाम् । तरुणोऽपि क्वचित् कुर्यात्, दृष्टतत्त्वोऽपि विक्रियाम् ।। ५॥
(तथा ऐसा भी कहा जाता है कि-) वृद्धावस्था में शरीर शिथिल हो जाने से प्राणियों की बुद्धि स्वस्थ होती है और तरुण तो तत्वों का ज्ञाता होने पर भी किसी स्थान में विकार पा जाता है।
वार्धकेन पुनर्धत्त, शैथिल्यं हि यथा यथा,
तथा तथा मनुष्याणां, विषयाशा निवर्तते ॥ ६ ॥ मनुष्य वृद्धावस्था आने पर ज्यों ज्यों शिथिल होता जाता है स्यों त्यों उसकी विषय तृष्णा भी निवृत्त होती जाती है।