________________
रोहिणी की कथा
१६३
मनोहर है। अमुक स्त्री को धिक्कार हो, क्योंकि उसकी चाल ऊंट के समान है । वह मलीन शरीर वाली है । उसका स्वर कौए के समान है। वह दुर्भागिनी है । इस भांति स्त्री की प्रशंसा व निन्दा करने की बात धर्मार्थी पुरुष ने नहीं करनी चाहिये।
अहो ! खीर में जो मधुर मधु, गौघृत और शर्करा (शकर ) डाले तो कैसा सरस होता है ? दही रस तो सबसे श्रेष्ठ है । शाकों के अतिरिक्त मुख को सुखकर अन्य क्या हो सकता है ? पवान के बिना अन्य कौन मन को प्रसन्न करता है ? तांबूल का स्वाद निराला ही है। इस प्रकार खाने पीने के संबन्ध की बाते चतुर मनुष्यों ने सदैव त्याग करना चाहिये। ____मालवा तो धान्य और सुवर्ण का भंडार है । कांची का क्या वर्णन किया जाय । उदभद् सुभटों वाली गुजरात में तो फिरना ही मुश्किल है । लाट तो किराट के समान है । सुख निधान काश्मीर में रहना अच्छा है । कुतल देश तो स्वर्ग समान है ऐसी देश कथा बुद्धिमान पुरुष ने दुर्जन के संग समान त्यागना चाहिये। ___ यह राजा शत्रु समूह को दूर करने में समर्थ है। प्रजाहितैषी है और चौरों को मारने वाला है । उन दो राजाओं का भयंकर युद्ध हुआ। उसने इसको ठीक बदला दिया । यह दुष्ट राजा मर जाय तो अच्छा । इस राजा को मैं अपना आयुष्य अर्पण करके कहता हूं कि, यह चिरकाल राज्य करे । इस प्रकार की महान् कर्मबंध की कारण राजकथा को पंडितों ने त्यागना चाहिये। __ वैसे ही शृगार रस उत्पन्न करने वाली मोह पैदा करने वाली हास्य क्रीड़ा उत्पादक और परदोष प्रकट करने वाली