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से मस्तक पर के मुकुटों की अणियों के झनझन करते मिलाप के साथ देवों व दानवों के इन्द्र भी पूजा करते ही हैं, कहा है किः___ इस लोक में सब कोई गुणों के कारण (माननीय) गिने जाते हैं, उदाहरण देखो कि गुण से अधिक ऐसे वीर प्रभु के समीप झूलती हुई मुकुट की अणियों से इन्द्र भी सदैव आया करते हैं। ____ विमल केवलं' इस पद से तो ज्ञानातिशय सहितपना बताने से प्रख्यात सिद्वार्थ राजा के कुलरूप निर्मल आकाश प्रदेश में चन्द्र समान वीर जिनेश्वर का वचनातिशय (भी) बतलाया जाता है, कारण कि केवलज्ञान प्राप्त होते तीर्थकर भगवान् अवश्य ही उत्तमोपदेश देने को प्रवृत्त होते हैं, क्योंकि इसी प्रकार से तीर्थकर नामकर्म भोगा जा सकता है, जिससे पूज्य श्री भद्रबाहु स्वामी ने कहा है किः--तं च कह वेइज्जइ?, अगिलाए धम्मदेशणा ईहि : "वह तीर्थकर नामकर्म किस प्रकार भोगाजाय ? उसका उत्तर यह है कि- अग्लानि से अर्थात् क्लेश माने बिना धर्मोपदेश आदि करने से" इत्यादि. ___'वीर' इस यौगिक (सार्थक) पद द्वारा सर्व अपाय के हेतुभूत कर्मरूपी शत्रु के समूह को नूल से उखाड़ने वाले भगवान् चरम जिनेश्वर वोर प्रभु का अपायापगमातिशय स्पष्टतः कह दिखाया है, कारण कि, समस्त कर्म संसार में भ्रमण करने के कारण होने से अपाय रूप हैं, देखो, आगम में लिखा है कि:-सव्वं पावं कम्म
“ सर्व कर्म पापरूप हैं, क्योंकि उनसे (जीव) संसार में भटका करता है।" ___ 'धर्मरत्नार्थि' इस पद से यह सूचित किया जाता है कि सुनने के अधिकारी का मुख्य लिंग अर्थित्व ही है-अर्थात् जो अर्थी होवे वही सुनने का अधिकारी माना जाता है, जिससे अति परो