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गुणरागित्व गुण पर
को, स्त्री को श्रमण को, घायलों को, शरणागत को, दीन को, दुःखी को, दुःस्थित को जो निर्दयी मनुष्य प्रहार करते हैं वे सात कुल तक सातवें नरक में जाते हैं । ___ यह सोचकर उसने पल्लीपति को छोड़दिया तब वह विनंती करने लगा कि-हे कुमार ! मैं आपका दास हूँ और मेरा मस्तक आपके स्वाधीन है। इस प्रकार प्रीतिपूर्वक कह कर वज्रभुज अपने इष्ट स्थान को गया। पश्चात् कुमार ब्राह्मण के साथ नन्दीपुर में आ पहुचा। .
वहां बाहर के उद्यान में उक्त ब्राह्मण के साथ विश्राम किया । इतने में उसने एक उत्तम लक्षणवान चन्द्रकिरण के समान श्वेत केश-धारी, गुण शाली किसी पुरुष को आता हुआ देखा । तब उसने विचार किया कि-ऐसे सुपुरुष की अवश्य प्रतिपत्ति करना चाहिये । इससे वह दूर ही से उठकर 'पधारो पधारो' यह बोल कर, उसे आसन पर बिठा, हाथ जोड़ कर विनंती करने लगा।
हे स्वामि ! आपके दर्शन से मैं अपना यहां आना सफल हुआ मानता हूं । इसलिये जो कहने योग्य हो तो आपका परिचय दीजिए।
तब वह पुरुष राजकुमार के विनय से मुग्ध हो कर कहने लगा कि, महान् रहस्य हो तो वह भी तुझे कहने में आपत्ति नहीं, तो भला यह बात ही कौन सी है। यहां से समीप सिद्धकुट पर्वत में अनेक विद्याओं का सिद्ध करने वाला मैं भूतानन्द नामक सिद्ध निवास करता हूं। - मेरे पास एक सारभूत विद्या है। अब मैं अपना आयुष्य थोड़ा ही जान कर ऐसे विचार में पड़ा हूं कि-पात्र मिले बिना यह विद्या मैं किसको दू? क्योंकि अपात्र को विद्या. देना उचित