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गुणरागित्व गुण पर
उसने अपनी दूती कुमार के पास भेजी । वह उद्यान में स्थित कुमार को कहने लगी कि, क्षण भर एकान्त में पधार कर मेरी आवश्यक बात सुनिये।
कुमार के वैसा ही करने पर वह बोली कि-जैसे महादेव को पार्वती प्रिय है, वैसे राजा को प्रिय मालती रानी है । वह आपको देखकर व आपके गुण सुनकर मोहित होकर कामाग्नि से जलतो है । अतएव उस बेचारी को आप अपने संगम जल से सिंचन करिये। ____ यह सुन कुमार विचारने लगा कि हाय हाय ! मोह के वश हुए लोग इसलोक तथा परलोक से विरुद्ध अकार्य में भी देखो, कैसे प्रवृत्त होते हैं। इस प्रकार खिन्नता के साथ विचार करके कुमार उक्त दूती को कहने लगा कि-सुकेशि ! तू भी क्षण भर मध्यस्थ होकर मेरा वचन सुन ।
कुलीन स्त्री को पर पुरुष मात्र में भी अनुराग करना अनुचित है तो फिर पुत्र में अनुराग करना तो अत्यन्त विरुद्ध ही है । कुलीन स्त्रियां चित्र में अंकित पर-पुरुष को भी देखकर, सूर्य को देखते जैसे दृष्टि फेरली जाती है वैसे ही झट उस पर से दृष्टि फेर लेती हैं । कुलीन स्त्री, जिसके कान, हाथ, पैर, नाक कटे हों और सौ वर्ष का बृद्ध हो गया हो, ऐसे पुरुष के साथ भी आलाप आदि नहीं करती है। . यह कह कर उसने दूती को लौटाई । उसने आकर सब कह सुनाया, तो भी वह अस्थिर होकर एक के बाद एक दूती भेजने लगी। तब विषण्ण चित्त हो कुमार सोचने लगा कि क्या मैं अब आत्मघात कर लू? परन्तु परघात के समान आत्मघात करने की भी मनाई है । जो राजा से कहूँ तो इस बिचारी का नाश हो जाय