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सोमवसु की कथा
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___ अब ज्योंही वह घर में घुसी त्योंही पिता ने उसका अभिनंदन किया । तब सोमवसु विचारने लगा कि- अहो ! इसका समस्त परिवार सुशिक्षित जान पड़ता है।
पश्चात् अवसर पाकर उसने अन्दर जा त्रिलोचन को प्रणाम किया और विनन्ती करने लगा कि-हे महा पंडित ! मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ । इसलिये कृपा करके कहिये कि मैं किससे दीक्षा लू। तब वह बोला कि- जो “मिष्ट भोजन" इत्यादि तीन पद बोलता तथा पालता हो उसीसे दीक्षा ले । तब सोमवसु बोला कि- इन पदों का परमार्थ क्या है ?
तब पंडित बोला कि- हे महाशय ! जो अपने लिये स्वयं न किया हुआ, दूसरे के द्वारा नहीं बनवाया हुआ, वैसे ही उसके उद्देश्य से भी नहीं बनाया गया हो ऐसा विशुद्ध आहार, पानी व मणि-मंत्र-मूल तथा औषधि के प्रयोग किये बिना मधुकरी वृत्ति से लेकर राग - द्वष त्याग कर काम में लावे वही इस जगत में परमार्थ से मीठा खाता है, क्योंकि शुद्ध आहार को खाता हुआ वह प्राणी कटुक विपाक वाले कर्म का संचय नहीं करता, इसीसे वह मीठा है। इससे विपरीत जो खाता है वह हिंसक होने से अशुभ विपाक वाले कम बांधता है । इससे वह अमिष्ट माना जाता है। . ___ अयतना से खाता हुआ अनेकों प्राणभूतों की हिंसा करता है
और पाप कर्म बांधता है कि जिससे उसके कडुवे फल मिलते हैं। जो सकल मानसिक चिंताएं त्यागकर सद्धयान और संयम में उद्यत हो गुरु की अनुज्ञा से विधि पूर्वक रात्रि में सोता है वही सुख से सोता है। वैसे ही जो धन, धान्य, सोना, चांदी, रत्न, चतुष्पद आदि सकल द्रव्य में सदैव निस्पृह रहता है वही लोकप्रिय होता है।