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यशोधर की कथा
बात राजा ने कही। जिसे सुन माता ने भयभीत हो बायें पैर से पृथ्वी दबाकर थू थू किया।
यशोधरा बोली- इस स्वप्न का विधात करने के लिये कुमार को राज्य देकर तू श्रमणलिंग ग्रहण कर।
राजा बोला:-माता की आज्ञा स्वीकार है।
यशोधरा बोली:-तू गिर पड़ा उसको शान्ति के लिये बहुत से पशु पक्षी मारकर कुल देवता की पूजा कर शान्ति कर्म करूगी। ___ राजा बोला:-हाय, हाय ! माताजी आपने जीवघात से शांति कैसे बताई ? शांति तो धर्म से होती है, और धर्म का मूल दया है। कहा भी है कि-भयभीत प्राणियों को अभय देना, इससे बढ़कर इस पृथ्वी पर अन्य धर्म ही नहीं । ___ जगत् में सुवर्ण, गाय तथा पृथ्वी के दाता तो बहुत से मिलेंगे, परन्तु प्राणियों को अभय देने वाला पुरुष तो कोई बिरला ही मिलेगा। . . महान् दान का फल भी समय पाकर क्षीण हो जाता है, परन्तु भयभीत को अभय देने का फल कदापि क्षय को प्राप्त नहीं होता।
दान, हवन, तप, तीर्थ सेवा तथा शास्त्र श्रवण ये सर्व अभय दान के षोडशांश भी नहीं होते । एक ओर समस्त यज्ञ और समस्त महादक्षिणाएं तथा एक ओर एक भयभीत प्राणी का रक्षण करना ये बराबर हैं । सर्व वेद उतना नहीं कर सकते । वैसे ही सर्व यज्ञ तथा सर्व तीर्थाभिषेक भी उतना नहीं कर सकते किजितना प्राणी की दया कर सकती है। इसलिये हे माता ! वही