________________
सुदाक्षिण्यता गुण पर
तदनन्तर उनको साथ में ले वह महात्मा अपने गुरु के पास आया। गुरुने उस दाक्षिण्य सागर कुमार की प्रशंसा की । पश्चात् उसने संपूर्ण आगम सीख, निर्मल व्रत पालन कर मोक्ष प्राप्त किया।
इस प्रकार दाक्षिण्यवान् क्षुल्लककुमार को प्राप्त हुआ फल स्पष्टतः सुनकर सदाचार की वृद्धि के हेतु हे भव्यो! तुम प्रयत्न करो।
इति क्षुल्लककुमार कथा समाप्त
सुदाक्षिण्य रूप आठवां गुण कहा । अब लज्जालुत्व रूप नौं वे गुण का वर्णन करते हैं:
लज्जालुओ अज्ज वज्जइ दूरेण जेण तणुयपि ।
आयरइ सयायारं न मुयइ अंगीकार कहवि ॥ १६ ॥ मूल का अर्थ - लज्जालु पुरुष छोटे से छोटे अकार्य को भी दूर ही से परिवर्जित करते हैं, इससे वे सदाचार का आचरण करते हैं और स्वीकार की हुई बात को किसी भी भांति नहीं त्यागते हैं। ___टीका का अर्थ-लज्जालु याने लज्जावान्-- अकार्य याने कुत्सित कार्य को ( यहां नञ् कुत्सनार्थ है) वर्जता है याने परिहरता है--दूर से याने दूर रहकर--जिस कारण से-उस कारण से वह धर्म का अधिकारी होता है, ऐसा संबन्ध जोड़ना, तनु याने थोड़े अकार्य को भी त्यागता है तो अधिक की बात ही क्या करना।