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सुदाक्षिण्यता गुण पर
वहां गया । राजा से मिलना दूसरे दिन पर रखकर वह वहीं बैठकर नवीन नवीन रचनायुक्त नृत्य देखने लगा ।
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वहां सम्पूर्ण रात्रि भर नृत्य करके थकी हुई नटी प्रातः काल में जरा झोखे खाने लगी। तब उसकी माता विचारने लगी कि- अभी तक अनेक हाव भाव द्वारा जमाये हुए रंग का कदाचित् भंग हो जावेगा, जिससे वह गीत गाने के मिष से उसे निम्नानुसार प्रतिबोध करने लगी ।
अच्छा गाया, अच्छा बजाया, अच्छा नृत्य किया, इसलिये हे श्याम सुन्दरी ! सारी रात बिताकर अब स्वप्न के अन्त में गफलत मत कर | यह सुनकर क्षुल्लककुमार ने उसे रत्न - कम्बल दिया । राजपुत्र यशोभद्र ने अपने कुण्डल उतार कर दिये । सार्थवाह की स्त्री श्रीकान्ता ने अपना देदीप्यमान हार उतार कर दे दिया । जयसंधि नामक सचिव ने दमकते हुए रत्न वाला अपना कटक दे दिया । कर्णपाल नामक महावत ने अंकुश रत्न दिया । इत्यादि सर्व लक्ष मूल्य की वस्तुएँ उन्होंने भेंट में दी। इतने ही में सूर्योदय हुआ ।
अब भाव जानने के लिये राजा ने पहिले क्षुल्लक कुमार से कहा कि तूने इतना भारी दान किसलिये दिया ? तब उसने आरंभ से अपना सम्पूर्ण वृत्तांत कह सुनाया और कहा कि यावत् राज्य लेने के लिये तैयार होकर तेरे पास आ खड़ा हूँ, परन्तु यह गीत सुनकर मैं प्रतिबुद्ध हुआ हूँ, और विषय की इच्छा से अलग हो, प्रव्रज्या का पालन करने के लिये दृढ़ निश्चयवान् हुआ हूँ । इसीसे इसे उपकारी जानकर मैंने रत्न-कम्बल दिया है । तब उसे अपने भाई का पुत्र जानकर राजा संतुष्ट हो कहने लगा कि
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हे अति पवित्र वत्स ! यह उत्तम विषयसुख युक्त राज्य