SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७४ ) ध्यान चिंतन के चिंतन में उग्र कषाय होने से मंद कषाय का यह सर्वविरति गुणस्थानक ही गुमा देगा। साधु वेश पड़ा रहे, वह इस गुणस्थानक से नीचे उतर जावेगा। प्रसन्नचन्द्र राजर्षि रौद्रध्यान के अति क्रू र चिंतन मात्र में चढे तो उतरे मिथ्यात्व गुणस्थानक तक और वहां सातवीं नरक तक को पाप एकत्रित किये। अत: मुनि को रौद्रध्यान नहीं होता। बाकी देशविरति श्रावक तक वह कभी कभी आ सकता है। प्रश्न- श्रावक को त्रस की दया अहिंसा का तो व्रत है, फिर वह उन जीवों के घात का चिंतन क्यों करे ? कैसे करे ? उत्तर- उसे निरपराधी त्रस जीवों का निरपेक्ष हिंसा नहीं करने का व्रत है; किन्तु अपराधी त्रस जीव की अहिंसा का व्रत कहां है ? वहां सम्भव है कि ऐसी हिंसा के क्रू र चिंतन में चढ जाय तब रौद्रध्यान होता है। प्रश्न- तो उस समय सम्यक्त्व रहेगा? यदि न रहे तो वह तुरन्त उस गुणस्थानक से नीचे गिरता है । फिर उस गुणस्थानक पर रौद्रध्यान कहां रहा? ___उत्तर- ऐसा नहीं है। सम्यक्त्व रह सकता है क्योंकि सम्यक्त्व में सर्वज्ञोक्त हेय उपादेय पदार्थों की मात्र यथार्थ श्रद्धा ही है, पर हेय का त्याग नहीं है। अत: कर्मवश हेय का सेवन करता है। तब भी हेय गलत है, ऐसी श्रद्धा परिणति मन के भीतर हो सकती है। मारने में दोष नहीं', यह बुद्धि मिथ्यात्वमो हनीय कर्म करवाता है। 'उसे मारूं; ऐसी बुद्धि चारित्रमोहनीय करवाता है । इससे मिथ्यात्व जाकर समकित आया हो तब भी चारित्र मोहनीय कर्म मारने की बुद्धि करवाये ऐसा होता है। इसलिए कहा कि 'देशविरति तक के जीवों का मन रौद्रध्यान भी अपना सकता है। यहां 'मन' शब्द
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy