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________________ ( ७२ ) करते ही उसकी अनुमोदना का भी क्रूर चिंतन हो सकता है । इस तरह हरेक प्रकार में ३-३ तरह से रौद्रध्यान होता है । उदा० हिमादि कराने सम्बन्धी गैद्रध्यान. दूसरे के पास किसी को पिटवाने, बंधवाने, बिंधवाने, जलवाने, दाग लगवाने तथा मार डालने आदि का क्र र चिंतन होता है । अथवा असभ्य चुगली झूठ बोलने या हिंसा का उपदेश करवाने का भी चिंतन हो सकता है, अथवा किसी के पास चोरी, लूट आदि करवाने का भी कर चिंतन हो सकता है, अथवा दूसरे के पास विषय सुख के साधन स्वरूप धन माल का संरक्षण करवाने के बारे में वैसा चिंतन हो सकता है, जैसे कि 'मैं अमुक के पास हिंसा आदि करवाऊं....' ___ अनुमोदन से कैसे रौद्रध्यान इस तरह स्वयं करने या दूसरे के पास करवाने का ही नहीं, किन्तु कोई ऐसो हिंसा झूठ आदि का आचरण करता हो उसकी अनुमोदना करने का भी क्रूर चिंतन हो सकता है । जैसे मन में ऐसा क्र र भाव उत्पन्न हो कि 'उसने उसको मारा या पीटा यह अच्छा हुआ ! वह उसके लायक था।' लड़ाई (युद्ध) के जमाने में लोगों ने ऐसा चिंतन बहुत किया। जापान या जर्मनी वालों ने अंग्रेजों का निकन्दन निकाला। यह जानकर खुश होकर उसकी अनुमोदना के कर चिंतन किये। ऐसा ही हुल्लड़ (साम्प्रदायिक दंगे) में होता है । इसमें किसी की कतल हुई जानकर खुशी का चिंतन होता है। अथवा हिंसामय नील भादि की अच्छी कमाई के धन्धे पर ऐसा चिंतन होता है। अरे ! स्वयं को जिस पर अरुचि है वह किसी से लूटा जाय या पीटा जाय या किसी दुर्घटना द्वारा उसे हानि या मृत्यु हो तो उस पर खुश होने का क्रू र चिंतन होता है । यह सब रौद्रध्यान है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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