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________________ ( ५६ ) : - दूर रह जाती है । इससे भी वह आर्त्त ध्यान में डूब जाता है । जिनमूर्ति भरवाने वाला तथा जिन वचन से आकर्षित होने वाला सागरचन्द्र सेठ व्यापार धन्धे में इतना डूबा रहा कि उसे आर्त्त ध्यान होता रहा और उससे तिच गति का आयुष्य उपार्जन करके मर कर जितशत्रु राजा के घोड़े के रूप में उत्पन्न हुआ; जिसे त्रिलोकनाथ श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान ने आकर प्रतिबोध किया । क्षण भर का भी ऐसा आर्त्तध्यान जीव को भुलावे में डाल देता है;. उदा० भगवान श्री पार्श्वनाथ का जीव मरुभूति के प्रथम भव में जिनवचन का आदर करने वाला और सुन्दर श्रावकधर्म पालन करने वाला था और अन्त में कसूरवार अपने भाई से भी क्षमायाचना करने गया, तब भी उसने उसके मस्तक पर शिला का प्रहार किया इससे वेदना के आर्त्तध्यान में मर कर वह मरुभूति श्रावक जंगल में जंगली हाथी के रूप में उत्पन्न हुआ। तो यहां विचारने लायक यही है कि जिनधर्म मिलने पर भी (१) खान पान, पैसा, परिवार, धन्धा रोजगार में ओतप्रोत रहने से आर्त्त ध्यान का कितना अधिक ढेर लगेगा ? तथा (२) धर्म प्रवृत्ति भी करे तो भी कभा कभी यदि आर्त्त ध्यान में फंसा और यदि उसी समय आयुष्य बांधे तो वह कैसी दुर्गति में जावेगा ? यह तो सद्धर्म की श्रद्धा होने पर भी कम या ज्यादा समय भी सद्धर्म सेवन से पराङमुख रहने वाले की बात हुई । अब जो पहले से ही जिनवचन की अपेक्षा से रहित हो, उसकी बेपरवाही बाला अर्थात् श्रद्धा रहित हो उसका विचार करें तो देखेंगे कि वह तो ठीक ठीक आर्त्त ध्यान में डूबा रहता है । जिन वचन की परवाह जिसे नहीं है, इससे वह जिनेश्वर - कथित हेय उपादेय त्याज्य आदरणीय तत्त्व को कुछ गिनता नहीं, मानता नहीं । फिर त्याज्य का सेवन करता है, उपरान्त उसे उसका कोई अफसोस भी नहीं रहता । उलटे वह उसी में शाबाशी मानेगा। 'इसका सेवन
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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