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________________ : ( ५२ ) की जाती है । व्यर्थ बकवास करते हैं; कैसा समय आया है ? व्यापारी लुच्चे हैं, मिलावट ज्यादा होती है, सरकारी तन्त्र रिश्वतखोर है .. आदि । यह मन में स्थित आर्त्त ध्यान के कारण ही है। वैसे ही घर में स्वयं को अनिच्छनीय लगे वैसा कुछ हो गया या दूसरे को इष्ट मिला और स्ययं को न मिला तो वहां आर्त्त ध्यान बढने पर स्वयं सिर कूटता है, छाती पीटता है इत्यादि । अथवा ( २ ) पसंद नौकर व ० से पाला पड़ गया है अब वह हटता नहीं है या (३) किसी रोगादि कारण से वेदना हो रही है, वहां वह अपनी व्यथा प्रकट करता है, हाय हाय करता है । यह सब भीतर (हृदय) के आर्त्त ध्यान के कारण होता है । इतने बड़े प्रमाण में आक्रन्द, रुदन या ताड़न न भी हो तो अन्य आर्त्त ध्यान के लक्षण भी उपस्थित होते हैं । (४) स्वकार्य की निन्दा के पीछे आर्त्त ध्यान ( गाथा १६ ) स्वयं ने यदि कोई बनावट की हो, शिल्प, कला या व्यापार में इच्छित नहीं हुआ हो, अल्प फल मिला हो, निष्फल गया हो, तो उसकी घृणा प्रकट करता है । उदा० रसोई में कोई वस्तु बिगड़ गई, कपड़ा बराबर नहीं धुला, शिल्पी या अन्य कारीगर की कारीगरी इच्छानुसार नहीं हुई, घर में ही किसी चतुराई के काम में कुछ गलती रह गई, या नौकरी धन्धे में कुछ झगड़ा टंटा हुआ, उस पर वह उन चीजों की निन्दा करे, दूसरे के आंगे, या मन ही मन 'यह खराब हुआ, बिगड़ गया' कह कर घृणा व्यक्त करे; अरे ! यों तो स्वयं अपनी चतुराई, सामग्री आदि के हिसाब से बराबर किया हो, तब भी दूसरे का वैसा कार्य अच्छा बना हुआ देखकर स्वयं अपने काम की निंदा करे, यह आंतरिक आर्त्त ध्यान की स्थिति की सूचना करता है ।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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