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________________ । २९७ ) जह वा धणसंघाया खणेण पवणाहया विलिज्जति । झाणपवणावहूया तह कम्मघणा विलिज्जति ।।१०२।। अर्थः-अथवा जिस तरह से हवा से उडाये जाने वाले बादलों का समूह क्षण भर में नष्ट हो जाता है वैसे ही ध्यान रूपी हवा से उड़ाये जाने वाले कर्म-बादल नष्ट हो जाते हैं । विवेचन : लम्बे समय से काष्ठ घास आदि ईंधन इकट्ठा किया हो, उस पर अग्नि गिरे और साथ में हवा जोर से चलती हो, तो वह अग्नि इस ईंधन के ढेर को शीघ्र जला कर भस्म कर देता है। बस कर्मरूपी ईंधन के लिए ध्यान ऐसा ही काम करता है। कर्म को ईंधन की उपमा इमलिए दी गई कि जैसे ईंधन जल उठने पर उसके संसर्ग में रहे हुए को दुःख तथा गरमी देता हैं, वैसे ही कर्म भी उदय से प्रज्वलित होने पर शारीरिक दु ख तथा मानसिक ताप संताप देने का कारण बन जाते हैं. इससे वे ईंधन जैसे हैं । वे असंख्य भवों के एकत्रित हो कर अनन्त वर्गण। स्वरूप अनन्त स्कन्ध स्वरूप बने हुए हैं, तब भी जब ध्यान रूपी अग्नि भभक उठता है कि तुरन्त ही क्षण भर में वह ढेरों कर्मों को जला कर भस्म कर देता है । __ क्या ध्यान में इतनी ज्यादा ताकत है ? हां, कारण यह है कि यह ध्यान राग द्वेष के अत्यन्त निग्रह के साथ मन की भारी स्थिरता वाला होता है इससे यह स्वाभाविक है कि राग द्वेष और मन की अशुभ चंचलता पर यदि ढेरों कर्मबन्ध होते है, तो उससे विरुद्ध स्थिति में ढेरों कर्मों का क्षय होगा, होना ही चाहिये । ध्यान-हवा से कर्म-बादल नष्ट अब हवा से बिखरते हुए बादल का ७वां दृष्टान्त कहते हैं:
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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