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________________ ( २७६ ) केवलज्ञानी, उनमें भी चन्द्र' जैसे श्री तीर्थंकर भगवन्त हैं। उनके आगम-शास्त्र आर्त आदि ४ पकार के ध्यान तथा उनमें भा शुक्लध्यान के ४ भेद बताते हैं । अत: जिनागम वचन पर से भी शुक्लध्यान के पीछले दो भेद ध्यान रूप सिद्ध होते हैं। प्रश्न- क्या आगम कहता है इसलिए मान लेना चाहिये? तर्क से सिद्ध हो उसे ही तो मानना चाहिये न ? उत्तर - नहीं प्रतिन्द्रिय पदार्थ की सिद्धि केवल तर्क के बल पर नहीं हो सकती। कहा है:-- आगमश्चोपपत्तिश्च सम्पूर्ण दृष्टि-लक्षणम् । अतीन्द्रियाणामर्थानां सद्भावप्रतिपत्तये ।। अर्थात् -- अतीन्द्रिय पदार्थों याने बाह्य इन्द्रियों से जो ग्राह्य नहीं हैं वैसे पदार्थों के यथार्थ ज्ञान के लिए आगम और तक दोनों चाहिये । ये दोनों मिल कर सम्पूण पदार्थं दृष्टि पदार्थ बोधदायक बन सकते हैं अकेले तर्क से तो अतीन्द्रिय पदार्थ की सामान्य रूप से सिद्धि होती है किन्तु उसके अवांतर विशेष तो जिसने प्रत्यक्ष देखा हो ऐसे प्राप्तपुरुष से व उनके वचन से ही जाना जा सकता है । उदा० बाहर दिखाई देने वाले धुए पर से घर के अन्दर अग्नि होने का अनुमान होता है वह सामान्य रूप में हुआ। परन्तु वह अग्नि कितने प्रमाण में है, कैसे काष्ट आदि का है, उसकी ज्वाला कैसी है.... इत्यादि बातें अनुमान से नहीं जानी जा सकतीं। यह तो अन्दर बैठा हुआ व्यक्ति ही प्रत्यक्ष देख सकता है और उसके वचन से बाहर वाला जान सकता है। ऐसा ही आत्मा, कर्म, ध्यान आदि अतीन्द्रिय पदार्थों के बारे में है। इससे सर्वज्ञ वचन से ही उसकी विशेषताएं जानी जा सकती हैं। इसे यदि वह कहते हैं कि सूक्ष्मक्रिया अनिवर्ती और न्युपरत क्रिया अप्रतिपाती दोनों ध्यान रू। है',
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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