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________________ ( २६१ ) से कम मनोयोग हो, उसने जितने मनो द्रव्य लिस गए हों तथा उसे जितना मनोयोग-व्यापार हुआ हो, उससे असंख्य गुना कम मनो. द्रव्य-व्यापार का प्रति समय निरोध करते हैं और वैसा करते करते असंख्य समय हो जाने पर सम्पूर्ण मनोयोग का निरोध हो जाता है। फिर वचन योग का निरोध करते हैं। वह भी ऐसे ही काययोग से। इसमें निरोध का प्रमाण यह है । अभी ही वचन पर्याप्त बने बेइन्द्रिय जीव को प्रथम समय में जो कम से कम वचनयोग हो, उससे भी असंख्य गुना कम (असंख्य गुण हीन) वचन योग का प्रति समय निरोध करते चलते हैं। इस तरह असंख्य समय निकल जाने पर सम्पूर्ण वचनयोग का निरोध होता है। फिर काय योग का निरोध करते हैं। उसका प्रमाण इस तरह है। कोई जीव सूक्ष्म निगोद ( साधारण वनस्पतिकाय शरीर ) में उत्पन्न होता हैं। वहां जन्म के पहले ही समय उसे जो कम से कमकाय योग हो, उससे असंख्य गुणहीन काययोग का प्रति समय निरोध करते हैं और ऐसा करते करते असंख्य समय व्यतीत होने पर सम्पूर्ण काययोग का निरोध करते हैं। काय के तृतीयांश का त्याग काययोग निरोध करते वक्त जो आत्मप्रदेश अभी तक संपूर्ण शरीर में व्याप्त थे, वे अब शरीर के तिहाई हिस्से को छोड़ देता है और 3 दो-तृतीयांश हिस्से में ही व्याप्त होकर रहते हैं। इसका कारण यह है कि जिस समय काययोग के निरोध करने का आत्मप्रयत्न चलता है, उस समय उस प्रयत्न में शरीर के खाली हिस्सों में आत्मप्रदेश घुसकर खाली हिस्से ( पोले भाग या खड्डे आदि) के चारों ओर के हिस्से में परस्पर अखण्ड संलग्न बन जाने से स्वाभाविक है कि अन्य जगहों से संकुचित हो कर वहां आते हैं।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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