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________________ ( २४१ ) शुक्ल ध्यान के आलम्बन विवेचन : आलम्बन द्वार का विचार करते हुए शुक्ल ध्यान के आलंबनरूप, क्षमा, मृदुता, ऋजुता व मुक्ति है । क्षमादि का स्वरूप ये क्षमादि क्रोध, मान, माया, लोभ के त्याग रूप समझने के हैं। अर्थात् क्रोध-त्याग क्षमा है, मान-त्याग ही मृदुता है, माया. त्याग ही ऋजुता और लोभत्याग ही मुक्ति है । इसमें क्रोध आदि का त्याग दो तरह से है:-(१) उदय में आने को तैयार क्रोध आदि मोहनीय कर्म के उदय का निरोध याने रोकना, तथा (२) उदीरणा किये गये क्रोधादि को निष्फळ बनाना। (१) क्रोधादि के उदय का निरोध (रोक) इस तरह है : उदा० अपने को किसी की तरफ से प्रतिकूल अनिष्ट होने का पता चले, जैसे खंधक मुनि को आ कर चांडालों ने कहा कि 'हमारे राजा के हुकम से हमें तुम्हारी चमड़ी उतारना है।' ऐसा सुनने में क्रोध कषाय के दय में आने की तैयारी मिनी जायगी। उसी समय उस उदय को शुभ विचारों से रोकने का प्रयत्न कर के उसे रोका जाय। यह उदयनिरोध किया कहा जावेगा। शुभ विचारणा कैसे करना वह आगे बताया जायगा। (२) उदीरणाकृत क्रोधादि को इस तरह निष्फल करे । सामने वाले ने हमारे प्रति कोई प्रतिकूल बर्ताव किया, हमारा अनिष्ट कियाया नापन्सद बात की, तो तुरन्त ही दिल में क्रोध भडक उठता है। यह क्रोध की उदीरणा अथवा उदय कहा जावेगा। अब इसे निष्फल करना याने क्रोधोदय के उपर उसका फल नहीं बैठने दें। उदा० अन्तर में क्रोध भड़क उठने पर 'कृोध से भरे हुए लंबे तर्क या लंबी
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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