________________
( २१६ )
अलग करके बताने का कारण प्रत्येक के उद्देश्य की भिन्नता है ऐसा लगता है । (१) संस्थान-विचय में तो जिनागमोक्त पदार्थ का वस्तुस्वरूप में विचार किया जाता है जिससे मन की चंचलता तथा असद् विचारधारा मिट जाय । (२) तब अपाय -विचय में तो जीव रागादि आश्रवों के सेवन में खिचा न जाय बह न जाय या बहता हुआ वापस आ सके, इसके लिए रागादि मे कैसे कैंसे भयंकर अनर्थं हैं, कटु परिणाम हैं, उनके भय के साथ उनका चिन्तन है, भय दिखलाने वाला चिन्तन है । ( ३ ) इसी तरह विपाक-विचय में, जीव अच्छे बुरे इन्द्रिय विषयों के आने या जाने पर, एवं रोग, वेदना, पराभव आदि होने पर हर्ष खेद आदि अमसाधि में न गिर जाय इसलिए, उदासीन भाव के साथ या उदासीन भाव की प्राप्ति करवाने वाले कर्म विपाक का चिन्तन है; क्योंकि यह अच्छी बुरी प्राप्ति मुख्यतः कर्म विपाक के आधीन है, कर्म विपाक की पीड़ा है. विडम्बना है । इसमें विह्वल क्या होना था ? इसमें दिलचस्पी लिए बिना हम तटस्थ भाव से उसका दर्शन करें, कर सकें, इसलिए उदासीन बनने के लिए विपाक-विचय ध्यान हैं ।
सारांश यह कि संस्थान-विचय में शास्त्रोक्त जोवादि पदार्थों के चिन्तन से मन को स्थिर करने की गिनती है तो अपाय-विचय में मिथ्यात्व इन्द्रिय विषय, रागद्वेष अशुभ योग आदि आश्रवों का भय रख कर मन को इन आश्रवों से बचा कर स्वच्छ समता-सम्पन्न रखने का उद्देश्य है और विपाक-विचय धर्मध्यान में आपत्ति संपत्ति के समय समाधि स्वस्थता रखने का हिसाब है । यों अपाय विपाक संस्थान विचय तीनों प्रकार के ध्यान से मन स्वच्छ स्वस्थ स्थिर बनाने का उद्देश्य हैं ।
ऐसे विविध उद्देश्यों की गिनती से ध्यान के भिन्न भिन्न प्रकार हुए । इस दृष्टि से सम्मतितर्क महाशास्त्र की टीका में वादी पंचानन