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________________ ( २०७ ) कषाय तथ, मिथ्यात्वादि है । इसमें क्या सुन्दरता या अच्छापन है ? तो संसार की वस्तु जन्म मरण गति परिवर्तन आदि में भी क्या अच्छापन है ? संसार स्वरूप से, कारण से, मोर कार्य से सभी तरह से खराब है। क्योंकि उसमें प्रात्मा को सचमुच में विडंबना ही है। इस प्रकार चिंतन करें। इतनी अनादि अनंतता और अशुभता के चिंतन में तन्मयता होने से संस्थान-विचय नामक धर्मध्यान होता है। ६. चारित्र पर चिंतन अब इस संसार को निवारण करने वाले चारित्र के बारे में चिंतन किस तरह करना चाहिये सो कहते हैं । चारित्र जहाज किस तरह से हैं ? संसार समुद्र जैसा है। तो उसे तैरने के लिए समर्थ यदि कोई जहाज हो तो वह चारित्रात्मक महा जहाज है। इसका कारण स्पष्ट है। जिस रास्ते से संसार उत्पन्न होता है, उससे विपरीत रास्ते से ही मोक्ष प्राप्त होगा । संसार असंयम, अविरति हिंसादि पापों की छूट और मिथ्या प्रवृत्ति के कारण होता है; तो उसका अंत संयम, विरति, सम्यक् प्रवृत्ति स्वरूप चारित्र से होता है। सम्यक्त्व बंधनः- अब ससार पार करने के लिए यह चारित्र महा जहाज हैं । जैसे जहाज में लकड़ी के टुकड़ों को जोड़ने वाले बंधन हैं, वैसे ही यहां चारित्र में सम्यग् दर्शन रूपो बन्धन है। यह होने से ही चारित्र टिकता है। अभव्य जीव चारित्र के महाव्रत लेते हैं, तब भी सभ्यग् दर्शन के अभाव से उनमें चारित्र का छठा गुणस्थानक न होकर मिथ्यादृष्टि का पहलागुणस्थानक का होता है। चारित्र की निर्दोषताः- चारित्र अनघयाने निर्दोष होता है । इसमें सर्व पापों का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग होता है ! साथ
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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