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________________ ( १९५ ) बह संस्थान विचय धर्मध्यान हुआ। मात्र ऐसे पदार्थ के चिंतन में भी यह ताकत है। ___ लोक्रस्थिति : लोकस्थिति याने लोक को व्यवस्था मर्यादा। उसका चिंतन करे। लोक में जहां जहां पृथ्वी, पर्वत, समुद्र विमान मादि जिस विस प्रकार से व्यवस्थित हैं, वहां वह भाकाश व बायु आदि में प्रतिष्ठित है। उदा० ऊपर सिद्धशीला लोक के अग्र भाग में व्यवस्थित है वह किसके आधार पर है । उसके नीचे मात्र आकाश ही है। जैसे पर्वत के नीचे भूमि होती है वैसे उसके नीचे भूमि नहीं है। इसी तरह अनुत्तर तथा ग्रं वेयक आदि विमान भाकाश में आधार हित रहे हुए हैं । इसी तरह तनवात भी आकाश में अवस्थित है। विमान प्रादि प्राधार रहित कैसे रह सकते हैं ? प्रश्न- तो वे बाकाश में नीचे गिर नही जाते ? अाधार रहित कैसे रह सकते हैं ? उत्तर- आकाश में आधार रहित रहे हुए हैं, यह हकीकत है। सूर्य चन्द्र आकाश में इसी तरह स्थित दिखते ही है न ? कैसे रह सकते हैं ? उसकी स्पष्टता यही है कि तथा स्वभाव याने उनका सा स्वभाव ही है। यह ऐसी परिस्थिति शाश्वत काल की है, लोक स्थिति है वह वस्तुस्वभाव है, अत: वह वैसे ही रहती है। यदि आकाश के बदले उसका कोई अन्य भाषार होने का आग्रह रखा जाय तो पुनः यह प्रश्न आकर खड़ा होता है कि यह आधार किसके आश्रय पर टिका है ?....वैसे प्रश्न करते रहने पर आखिर तो आधार भाकाश का ही मानना पड़ता है और उसके वैसा होने या रहने का कारण बस्तु का तथा स्वभाव ही है। फिर तो स्वभाव के बारे से 'ऐसा स्वभाव क्यों ?' ऐसा प्रश्न नहीं हो सकता। क्योंकि स्वभाव
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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