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होता है। यहां संस्थान याने 'संस्थिति, अवस्थिति, स्वरूप, पदार्थो का स्वरूप' अर्थ होता है । विचय याने चिंतन अभ्यास करना । सर्वज्ञ कथित सिद्धान्त शास्त्र के पथार्थ ही यथार्थ होने से उनका ही चिंतन अभ्यास करना होता है । ये पदार्थ नाम से इस प्रकार है:
संस्थान विचय में सोचने के पदार्थ
निम्न पदार्थों के स्वरूप का एकाग्र चिंतन करना है। इसमें मुख्य पदार्थ हैं, ६ द्रव्य, पंचास्तिकाय मय अष्टविध लोक, क्षेत्रलोक, बीव, ससार, चारित्र और मोक्ष ।
१. ६ द्रव्यों के लक्षण ४. जीव नित्य उपयोग | तप
आकृति, आधार
देह, भिन्न, रूप, वैराग्य
कर्मकर्ता भाग्य |
प्रकार, प्रमाण, उत्पा
दादि पर्याय ।
२. नाम - स्थापना- द्रव्य
क्षेत्र - काल-भाव पर्याय-लोक-इन भेदों से पंचास्तिकाय लोक -- वह
नित्य है |
३. ७ पातालभूमि-द्वीप
समुद्र- नरक- विमान भवन- व्यंतर नगर १४ राजलौक संस्
थान ।
५. संसार सागर ।
जन्मादि
कषाय
व्यसन
मोह
अज्ञानप्रेरित संयोग वियोग
सम्यक्तव
निष्पाप
ज्ञान
संवर
जल | शीलांगभृत
पाताल मुनि
श्वापद
आवर्त
पवन
रित
६ चारित्र जहाज
बंधन
निर्दोष
कप्तान
छिद्र स्थगन
दुर्ध्यान अस्पृष्ट
तरंग
पवन
मार्ग
तरंग से
अक्षुब्ध
रत्नभृत व्यापारी
६. मोक्षनगर
ज्ञानादि विनियोग
सुख एक न्तिक,
निर्बाध (सहज
अनुपम, (अक्षय ।
जीवादि तत्त्व विस्तार
से युक्त सर्वनय समूहमय
सिद्धांत पदार्थ |