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________________ ( ६४ ) 'सूत्र के एक भी अक्षर की अरुचि से मनुष्य मिथ्यादृष्टि बनता है । अतः हमारे लिए तो जिनोक्ति सूत्र (संपूर्ण) प्रमाण है।' इस तरह शंका रहित होना । कदाचित् कहीं शंकास्पद लगे तो भी सोचना चाहिये कि 'जैसे दूसरे सर्वज्ञ वचन वैसे ही यह वचन भी सर्वज्ञकथित होने से सत्य ही है । मात्र हमारी मति दुर्बल है, अत: यह हमारी समझ में नहीं आता ।' यह सोचकर शंका दूर करना चाहिये । शंका विनाश का सजन करती है। एक माता ने दूध में भुने हुए उड़द डालकर उसका पेय बनाया । उसके दो पुत्र स्कूल से आये । अन्धेरा था और वे पोने लगे । एक को शंका हुई 'इस में मक्खियें तो नहीं गिरी ?' ऐसे शंका सहित पीता रहा, इससे उसे कै ( उलटी) का दर्द लागू हो गया और आखिर वह मर गया। दूसरे ने सोचा, मेरी मां मुझे मक्खीवाला पेय देगी ही नहीं ।' ऐसे नि:शंक दिल से पीकर वह तुष्ट पुष्ट हुआ । I २. कांक्षा -याने बौद्ध आदि अन्यान्य मतों की आकांक्षा, अभिलाषा, वह भी अंश से तथा सर्वथा । 'अंशतः कांक्षा' याने उदा० बौद्ध दर्शन की ऐसी आकांक्षा होती है कि 'इस दर्शन में चित्त-जय का प्रतिपादन है और वह मोक्ष का मुख्य कारण है अतः यह दर्शन भी कार्यं कर सकता है, सर्वथा नगण्य नहीं है ।' सर्वकांक्षा याने सभी दर्शनों की अभिलाषा होती रहे कि 'सब में अहिंसादितो कहे ही हैं; तथा लोक में वे कुछ अत्यन्त क्लेश की बात तो कहने वाले नहीं है । अतः सभी दर्शन अच्छे हैं ।' ऐसी दोनों कांक्षा गलत है; क्योंकि ये सभी दर्शन एकांतवादी हैं। इससे वे वस्तुतत्त्व को न्याय देने वाले नहीं हैं, उलटे जो धर्मं पदार्थ में सचमुच रहे हुए हैं, वे धर्मं उनको असत् लगने से उनका वे खण्डन करते हैं । पुनः मार्ग के बारे में अन्य दर्शन जो अहिंसा या चित्तजय आदि कहते हैं वह स्थूल है। बाकी सूक्ष्म अहिंसा या हिंसा का उन्हें कुछ पता 1
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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