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________________ (7) बाह्य लिंगों का स्वरूप, सर्वज्ञ को मनके बिना ध्यान किस तरह ? सभी क्रियाओं में ध्यान अन्तर्भूत कैसे, शुक्ल ध्यान के बाद शरीर क्यों रखना चाहिये.... आदि का वर्णन किया है । धर्म ध्यान के काल में शुभाश्रव, संवर, निर्जरा, दैवी सुख, शुक्ल के फल में ये विशेष, तथा दोनों ध्यान ससार प्रतिपक्षी क्यों, मोक्ष हेतु कैसे ? इसका वर्णन करके ध्यान से कर्म नाश के बारे में पानी, अग्नि, सूर्य के दृष्टान्त देकर योगों का तथा कर्म का तप्त होना, शोषण, भेदन का वर्णन किया । ध्यान यह कर्म योग चिकित्सा, कर्मदाहकदव, कर्म बाद बिखेरने वाली हवा के रूप में बताकर ध्यान के प्रत्यक्ष फल में ईर्ष्या विषादादि मानस दुःख नाश समझाया । हषं दुःख किस तरह से ? ध्यान से शारीरिक पीड़ा में दुःख क्यों नहीं ? श्रद्धा - ज्ञान - क्रिया से ध्यान नित्य सेव्य बताकर क्रियाएं भी ध्यान रूप किस तरह हैं यह समझाया है । इतना बड़ा पदार्थ-संग्रह मन को काम में लगा देने के लिए है । मानसिक चिन्तन में इसी का रटन चलाये जाना होता है; इसी से इस ग्रन्थ रत्न का बार बार वांचन, मनन, संक्षेप में नोट करके और उसकी स्मृति उपस्थिति करने जैसी है तभी वह चिन्तन में चालू रखा जा सकेगा। इससे जीवन पर गजब रूप से प्रभाव पड़ेगा। बात बात में उठने वाले आर्त्त रौद्र ध्यान को रोका जा सकेगा, अनेकविध धर्मध्यान को मन में फिराया जा सकेगा । कलकत्ता वीर सं० २४६७ माघ सुद ५ रवि - पंन्यास, भानुविजय
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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