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________________ (७०) तरयोर्यदा ॥ रात्रिः सर्वजघन्या स्या-त्पूर्वपश्चिमयोस्तदा॥ ए६ ॥ सर्वोत्कृष्टं दिनमानं । पूर्वपश्चिमयोर्यदा ॥ रात्रिः सर्वजघन्या स्या-दक्षिणोत्तरयोस्तदा ॥ ए॥ किंच क्षेत्रेषु सर्वेषु । समं मानमहर्निशोः ॥ किंत्वेतयोरवस्थाने । यथोक्तः स्यादिपर्ययः ।। ए ॥ क्षेत्रे काले च सर्वस्मि-नहोरात्रो जवेध्रुवं ॥ त्रिंशन्मुहूर्तप्रमाणो । न तु न्यूनाधिकः कचित् ॥ "ए ॥ एवमहोरात्रे विशेष व. दंति, अत एव दक्षिणायनं देवानां रात्रिरुत्तरायणं तेषां होय , त्यारे पूर्व अने पश्चिममां सर्वथी जघन्य रात्रि होय ॥ ६ ॥ तथा ज्यारे पूर्व बने पश्चिममां सर्वथी नत्कृष्टुं दिनमान होय , त्यारे दक्षिण अने नतरमां सर्वथी जघन्य रात्रि होय ॥ एy ॥ वळी जो. के सर्व क्षेत्रोमां रात्रिदिवसनुं सरखं प्रमाण होय , तोपण तेनुनी अवस्थामां नपर कह्या मुजब फेरफार थाय . ॥ एG ॥ सर्व क्षेत्र धने सर्व कालमा अहोरात्र तो त्रीसमुहूर्तोनोज होय , परंतु क्यांय पण तेथी जजोय दको थतो नथी. ॥ ए ॥ एवीरीते अहोरात्रना संबं धमां एटलो तफावत कहे जे, अने तेथीज दक्षिणायन देवोनी रात्रि, तथा उत्तरायन तेननो दिवस कहेवाय
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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