SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६० ) । विषष्टिर्नीलव गिरेः ॥ रम्यकजीवाकोट्यां च । मंमले दे विवस्वतः || २३ || इयं जस्तैखता-पेक्षया मंगल स्थितिः ॥ यमिवायुस्थयो मेरो - या निषवतीलयोः ॥ २४ ॥ प्राग्विदेदापेक्षया तु । मेरो रैशान कोणगे || स्त्रिपष्टिर्नीलवति । मंगलानीति तदिदः || २५ || एवं प्रयग्विदे दाना - मपेक्षया सुमेरुतः || नै उस्थायिनिषधे । वि. ज्ञेया मंगलावली ॥ २६ ॥ किंच - विदिग्गतान्यां श्रे ने हरिवर्षनी जीवानी कोटीमां बे मांमलां वे ॥ २२ ॥ वळी मेरुनी बीजी बाजुए नीलवान पर्वतपर त्रेसठ पनेर म्यकक्षेत्रनी जीवानी कोटीमां सूर्यनां वे मांडलां बे. ॥ ॥ २३ ॥ मेरुश्री मिने वायव्यवृणामां रहेला निघ ने नीलवानपर्वतपर मांमलांनी या स्थिति भरतपने ऐवतक्षेत्रनी यपेक्षाये जाणवी ॥ २४ ॥ परंतु पूर्व विदेदनी यपेक्षाये तो मेरुथी ईशा खुरामा रहेला नीलवान पर्वत पर त्रेसठ मांडला होय, एम तेना जाएकारो कहे बे. ॥ २५ ॥ एवीरीते पश्चिमविदेदनी पेदाए मेरुथी नैऋत्यखुणामां रहेला निषधाचलपर मंमलोनी श्रेणि जाणवी ॥ २६ ॥ वळी - उदय क्षेत्रना प रावर्तनथी बन्ने यनोमां विदिशामां रहेली बे श्रेणिन ·
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy