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________________ (४ ) ॥ श्रयद्भिरतश्रेयः-श्रेणीमिव करे कृतां ॥ २४ ॥ वंदमानैः पर्युपास-मानैः पूजापरायणैः ॥ प्रासादास्तेऽभितो नाति । सुरासुरननश्चरैः ॥ १५ ॥ षनिः कुलकं ॥ पहकल्याणकमह–चिकीर्षयागताः सुराः ॥ इह विश्रा म्य संदिप्त-याना यांति यथेप्सितं ॥ २६ ॥ ततः प्रत्यावर्तमानाः । कृतकृत्या इहागताः ॥ रचयंत्यष्ट दिवसान । यावत्सवमुच्चकैः ॥ २७ ॥ प्रतिवर्ष पर्युषणा-चतुर्मासटलाक विविधप्रकारना रंगबेरंगी पुष्पोनी माळानना स. मूहना मिषधी हाथमां धारण करेली अद्भुत पुण्यनी श्रेणिने जाणे लेता होय नहि एवा, ॥ २४ ॥ तथा वं. दना करता, सेवा करता, अने पूजामां तत्पर एवा सुर, थसुर अने विद्याधरोथी ते प्रासादो चोतरफथी शोभी रहेला . ॥ २५ ॥ षनिः कुलकं ॥ अरिहंतप्रभुना क. व्याणकनो महोत्सव करवानी बाथी नहीं पावेला दे. वो वहीं विश्राम लेश्ने, तथा पछी पोतानां वाहनोने संकोचीने पोताना इबित स्थानके जाय . ॥ २६ ॥ पनी कृतार्थ थयाथका त्यांथी पाछा वळीने यहीं श्रावी तेन थाठ दिवसोसुधी तुंचे प्रकारे अगश्महोत्सव करे ॥ २७ ॥ वळी दरवर्षे पर्युषण तथा चोमासीपर्वमां
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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