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________________ (४५१) ॥२॥ साहियजोषणलक-छेगंतरठियससीणसूराणं ॥ पंतीए.पढ़माए । पणयालसयं तु पत्तेयं ॥ ३ ॥ तप्परन पंतीन। जोषणलखतरान सबान ॥ जो जश् लको दिव्वुदहि । तब तावश्य पंतीन ॥ ४ ॥ वुढी दु श्यगपंतीन । एह तश्याए हो सत्तएहं ।। तप्पर पं. ती। छगबुढी तश्यसगवुढी॥ ५॥ मतांतरं करणविभावनायामिदं स्मृतं । लदार्धातिक्रमे पंक्ति-राद्या म. त्योत्तराचलात ॥५२॥ दिसप्ततिः शशभतां । विसप्ततिएकांतरे रहेला चंडसूर्योनी पहेली पंक्तिमां तेन दरेक एकसो पस्तालीस एकसो पस्तालीस होय . ॥३॥ तेथी बागलानी सर्व पंक्तिन एक लाख जोजनना अंतरखाळी , तथा जे दीपसमुद्र जेटला लाखनो होय , त्यां तेटली पंक्तिन होय . ॥४॥ बीजी पंक्तिमां बनी वृछि थाय , पीत्रीजीमां सातनी, अने तेथी घागळ बे पंक्तिमां बनी वृद्धि थाय , अने तेथी यागळ सातनी वृधि थाय . ॥ ५ ॥ वळी करणविनावनामां नीचे मुजब मतांतर कहे , मानुषोत्तरपर्वतथी अर्थ लाख जोजन नळग्याबाद पहेली पंक्ति थावे . ॥ १२॥ ते. मां बहोतेर चंद्रो, थने बहोतेर सूर्यो होवाथी पहेली पं.
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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