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________________ ( ३४१ ) चक्रवालतया । शतानि पंच विस्तृतं ॥ अनल्पकल्प फलद - लतामंडपमं मतं ॥ २९ ॥ बहिर्विष्कंनोऽत्र मेरो - रु. काम्नायेन लन्यते | योजनानां सहस्राणि । नवाव्य शतत्रयं ॥ २६ ॥ तथाहि उत्क्रांतायाः पंचशत्या | दशभिर्नजने सति ॥ बव्धपंचाशतोऽधस्थ - व्यासात्त्यागे नवेदयं ॥ २७ ॥ बहिसात्पंचशत्या - त्यागे वोभयतः पृथक् ॥ अंतर्व्यासोsट सहस्रा - स्त्रिया सार्धयाधिकाः ॥ २८ ॥ सहखाणि पंचपंचा- शतं पंचशतीं तथा ॥ व्यतिक्रम्य योज कवालपणे पांचसो जोजन पहोळु, तथा विस्तीर्ण कल्पवृदो खने लताना मंमपोथी शोभितुं बे. ॥ २५ ॥ यहीं मेरुनी बहारनी पहोळाइ कहेल घ्याम्नायथी नव द जार सामान्रणसो जोजननी श्राय बे. ||२६|| ते कहे बे उपर चडेला पांचसोने दशे भांगवाथी घ्यावेला पचासने नीचेना व्यासमांथी वाद करवाथी ते थाय बे. ॥ २७ ॥ प्रथवा बन्ने बाजुथी जुदा जुदा बहारना व्यासमांथी पांचसो बाद करवाथी छंदरनो च्याउहजार साडा : सोनो व्यास घ्यावे रे || २ || दवे ते नंदनवनथी उपर पंचावन हजार ने पांचसो जोजन नळग्याबाद
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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