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________________ (६५) - नासिका वींधवाई, कर्णछेदन करवाया, खसी किया, दाना घास पानी के समय सार वार न की, लेण देण में किसी के बदले किसी को भूखा रखा, पास खडा होकर मरवाया, कैद करवाया, सड़े हुए धान को बिना शोधे काम में लिया, अनाज शोधे बिना पिसवाया, थूपमें सुकाया, पानी यतना से न छाना, ईंधन लकड़ी उपले गोहे आदि बिना देखे जलाये, उसमें सर्प विच्छू कानखजूरा किडी मकोडी आदि जीवका नाश हुआ, किसी जीव को दबाया दुःख होते जीव को अच्छी जगह पर न रखा चीन्ह काग कबूतर आदि के रहने की जगह का नाश किया, घोंसले तोडे, चलते फिरते या अन्य काम काज करते निर्दयपना किया । भली प्रकार जीव रक्षा न की विना छाने पानी से स्नानादिक काम काज किया, कपडे धोये । यतना पूर्वक काम काज न किया । चारपाई. खटोला, पांढा, पीढी आदि धूप में रखे डंडे आदि से झडकाये । जीव संसक जमीन को लीपी । दलते कूटते, लीपते या अन्य कुछ काम काज करते यतना न की। अष्टमी चौदस आदि तिथि का नियम तोडा । धूनी करवाई । इत्यादि पहिले. स्थूल प्राणातिपात विरमप प्रतसंबंधी जो कोई अतिचार पन दिवस में सुक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन बचन काया कर मिच्छामिदुक्कडं । दूसरे स्थूल मृषावाद विरमण ब्रत के पांच अतिसार ॥ " सहस्सा रहस्य दारे ०" सहसात्कार बिना विचारे एक दम किसी को अयोग्य आल कलंक दिया स्वस्त्री संबंधी गुप्त वात प्रकट की, अथवा अन्य किसी का मंत्र भेद मर्म प्रकट किया। किसी को दुखी करने के लिये खोटी सलाह दी। मूंठा लेख लिखा । झूठी साक्षी दी अमानत में खयानत की किसी की धरोड़ वस्तु पीछी न दी कन्या, गौ, भूमि, सम्बंधी लेन देन में लडते झगड़ते वाद विवाद में मोटा झूठ बोला । हाथ पैर आदि की गाली दी इत्यादि स्थूल मृषावाद विरमण बत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सुक्ष्म या बादर नानते अजानते लगा हो वह सब मन बचन काया कर मिच्छामि दुक्कई ॥ ... तृतीय स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत के पांच अतिचार ॥ " तेणाहडप्प ओगे०." घर बाहिर, खेत, खलामें, विना मालिक के भेजे वस्तु ग्रहण की।
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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