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________________ (५४) सात वा व्रत विचार कर के हमेश के लिये भी लेना और रोन के लिये भी १४ नियम यथा सक्ति लेना। चौदह नियम धारने की विधि दिनके चार प्रहर के नियम सबेरे मुंह धोने के पहिले विचार के शामको पार लीजिये. रात्रि के चार प्रहरके फिर शामको विचारके सुबह पार लीजिये, नियम तीन नवकारागन के लीजिये, और तीन नवकार गिन के पारिये, पारने के वख्त ज्यो ज्यो रक्खा था उसको याद करके संभाल लीजिये, कमती लगा उसका लाभ हुआ, भूल से जास्ती लगा उसका “मिच्छामिदुक्कडं" दीजिये. चाहे तो आठ प्रहर के भी धार सक्ते हैं परंतु चार प्रहर के धारने से पारने के वख्त (कितना नियम धारते वख्त रक्खा है और कितना भोग में आया है उसकी, ) विधि मिलाने में सुगमता रहती है। कोई व्रतधारी श्रावक जन्म भर के निर्वाह के वास्ते जादे जादे वस्तु रखते हैं तो १४ नियम धारने से उनका भी आश्रव संक्षेप हो जाता है इस स्वाले व्रतधारी को और अविरति को अवश्य १४ नियम धारने चाहिये । चोदह नियमों की गाथा । सचित्त दव्वे विग्गइ । वाणहें तंबोले वा कुसुमेसु ॥ वाहणं सयर्ण विलवणं बंभ दिसि न्हाण भत्तेसु ॥१॥ गाथा का संक्षिप्त अर्थ । १ सचित्त (जिस्मजीव सत्ता हो, बोने से ऊगे बीजादि) कच्चा पानी, हरी शाक फल, पान, हरा दातन, निमक आदि। . २ द्रव्य-नितनी चीन मुंह में जावे उतने द्रव्य-जल, मंजन, दातन, रोटी, दाल, चावल, कढी, साम, मिठाई, पूरी, घी, पापड पान, सुपारी, चूरन,मसाला भादि। .३ विगय–१०. जिनमें से मधु मांस, माखन, और मदिरा ये ४ महा विग य अभक्ष्य होने से, श्रावक को अवश्य त्याग करने चाहिये और (६)
SR No.022110
Book TitleDharmratna Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyamuni
PublisherDharsi Gulabchand Sanghani
Publication Year1916
Total Pages78
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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