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वे तो मुझे आनंद होवे, माताको पूछा, कि उसे कोन पढावेगा? माताने कहा तोशलिपुत्र नामके आचार्य तेरे इक्षुका गुड बनाने का घर में ठहरे हैं वहां जा, माताको कहा, मैं प्रभात में वहां जाकर पढ तेरे चित्तको प्रसन्न करूं गा. सूर्योदय के पहले ही उठ कर माताका आशीर्वाद लेकर चला रास्ते में शकुन भी अच्छे हुए, और उसका आगपन सुन एक मित्र इक्षु के सांठे लेकर दूसरे गांव से देने को आयाथा वो सामने मिला लडके ने ललिये गिने तो साठे नवथे. माताकी शांति के कारण उसने मित्रको वेही सांठे अपनी माताको देने के लिये पीछेदिये और उस मित्र के साथ कहलाया कि मैं शुभ श. कुन से जाता हूं जिससे मुझे दृष्टिवाद अंग पढने को मिलेगा, माताने भी इलु गिन कर निश्चय कियाकि पुत्र साडेनव पूर्व की विद्या पढेगा. आचार्य के पास जाने पर आर्य रक्षितने विचारा कि जैन साधु के पास मैं कभी नहीं गया तो वहां जाकर किस तरह वंदन करूं और क्या बोलं? इतने में एक श्रावक बांदने को आया उसी के पीछे जाकर उसकी तरह उसके शब्द सुन कर वं. दन किया किन्तु बड़े श्रावक को वंदन करना वो दूसरा श्रावक न होनेसे प्रथम के श्रावकने नहीं किया इतनी बुधी आर्य रक्षित में देख कर गुरुने उसे वहेवार से अजान किंतु तीक्ष्ण बुद्धि वाला जान पूछा हे भद्र! धर्म माप्ति तुझे कहां से प्राप्त हुई है वो बोला, इस श्रावक से, गुरु-कब वो बोला अभी ही. इस समय एक शिष्य जो गतं दिन की बात जानता था उसने सब बात गुरुको कह सुनाई, गुरुने अधिक प्रसन्न होकर कहा हे भद्र! तूं राज्य मान पाचूका है; अब तेरा विशेष सत्कार क्या करे? वो बोला, मुझे श्राप दृष्टिवाद अंग पढाये। ___ गुरु ने कहा कि संसार में जो विषय लोलुफ ( स्वादु), जीव है. उससे वो नहीं पढा जाता इसलिये तू साधु झेकर पढ वो बोला दीक्षा दो में साधु होता हूं आचार्य ने कहा सजादि की आश चाहिये वो बोला मुझे ताण कामी पढने में विलंब होवे सो अच्छा नहीं लगता ! मेरी माता के मुंझे पढने को भेजा है उसके उत्तम लक्षण व्यवहार और निपुण कुद्धि देख कर प्राचार्य ने दीक्षा दी उसका विशेष अधिकार आवश्यकादि सूत्रों से जानना