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प्रस्तावना
धर्म रत्न प्रकरण का मूल और गुजराती भाषांतर पालीताणा विद्यो - सारक वर्ग ने छपाया है जिसमें मार्गांगुसारी के ३५ गुण और कथा, भावक के २१ गुण और कथा, श्रावक के १२ व्रत, साधु के और पांच महावत का वर्णन अच्छी तरह है उसके हिंदी भाषांतर की बहुत आवश्यकता थी तो भी द्रव्य की संकीर्णता से थोड़े में अधिक लाभ हो इस तरह योजना कर संस्कृत मा गधी जो विवेचन गाथाओं के साथ मूल ग्रंथ में है उनका सार लेकर यही ग्रंथ तैयार किया है ।
केसरीचंद जी लूणिया एक विद्या प्रेमी प्रसिद्ध पुरुष जैन में है जिनका सुपुत्र दीपचंद जी के स्मरणार्थ श्रावक के २१ गुणों का वर्णन छाने का उनका विचार होने पर भी नीचली बातें बढाई है ।
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श्रावकों का १२ का वर्णन सातवें व्रत के १४ नियम जिसमें लक्ष्मीचंदजी घीया की किताब का आधार लिया है और अंत में आत्मानंद जैन पुस्तक प्रचारक मंडल की पंच प्रतिक्रमण की पुस्तक के अतिचार की की है जिससे श्रावकों को यह पुस्तक बहुत उपयोगी होगी ।
इस ग्रंथ का सब खर्चा श्रीयुत केशरीचंदजी लूलिया ने दिया है जिस को चाहिये वह मंगा लेवे.
पताः केशरीचंदजी लूणिया नया बाजार अजमेर
वांचक वर्गसे प्रार्थना.
प्रमाद बश दृष्टि दोष और प्रेस मैन और प्रेस की गलती से व भाषा की अज्ञानता से जो अशुद्धिऐं रह गईं हैं उनमें कितनीक का शुद्धिपत्र दिया है. उस शुद्धि पत्रको प्रथम पढकर किताब सुधार के पढ़े. और जहां समझ न पड़े बड़ों से पूछ कर पढ़ें.
मुनि माणक लाखन कोटड़ी, अजमेर ।