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को आकाश में एक बड़ी शिला तैयार की राजा ने उपद्रव देख हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि नगर का नाश न होवे, देवता ने कहा कि जो सुजात निर्दोष है और तूने झूठा कलंक देकर निकाला है अगर तू उसे पीछा बुला कर उसकी इज्जत करेगा तो सब बचेंगे, राजा ने शीघ्र बुलाने का प्रबन्ध किया सुजात को देवता ने उद्यान में लाकर रक्खा, और राजा ने उसे बड़ी इज्जत से घर को पहुंचाया, माता पिता का दर्शन करके थोड़े रोज बाद ही सुजात ने जैन धर्म की महिमा बढ़ा कर दीक्षा ली, और मुगति में गया इस लिये लोक प्रिय होना प्रत्येक श्रावक श्राविका का धर्म पाने में अनमोल गुण है।
(५) अकरता पंचम गुण । कर पुरुषको क्रोध ज्यादा होता है मानभी अधिक होता है, दूसरों के छिद्र - शोधकर गुणीको भी दोषी बनाकर अपने आप धर्म प्राप्ति नहीं कर सका है। इस लिये सुगुरुभी उसे धर्म नहीं बताते हैं, और गुरु महाराज दयासागर होकर बतातो वो अच्छी तरहसे नहीं समझसक्का बार समझे तोभी अपनी अशांतिसे उसका अनुष्ठान विधि अनुसार नहीं करता है कदाचित धर्मका अनुष्ठान विधि पूर्वक करभी लेवें ताभी अपनी अभ्यन्तर शांति बिना उसे समाधि नहीं मिलती और बिना समाधि के वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सक्ता इस लिये श्रावक धर्म पालने वालों में अकरता का गुण होना चाहिये। ____दृष्टांतः-एक ब्राह्मण कार्य प्रसंगात् गाड़ी लेकर माल लेने को दूसरे गांव में गया, रास्ते में रेतीली नदियें आती थीं ब्राह्मण ने बैलों की शक्ति बिना बिचारे ही एक दम बहुत सा माल भर लिया और लौटा, रास्ते में थोड़ी रेती वाली नदी में तो बैल पार कर गये परंतु घुटनुं रेती वाली नदी में बैल थक गये, ब्राह्मण ने बैलोंको मारना शुरू किया, बहुत मारने से भी बैल न बढ़े, और मारने से उनके शरीर में लोहू की धाराएं चलने लगी, और बह ब्राह्मण भी थक गया, लेकिन प्राण बैलों के निकले वहां तक उसने मारे, पीछे घर को गया तब घर वालों ने उसे पूछा कि आज इतनी देरी क्यों हुई ? बो क्रोध में बोला कि बैलों ने मुझे बहुत सताया है। मेरा माल खा