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भांगा एटला गहन छे के तेनुं विस्तृत वर्णन न होय तो समजाय नही. आ लेखके आजथी २२ वर्ष अगाउ पंडितवर्य श्री. उत्तमचंद्रनी स्वामी पासे ज्यारे आ भांगानो अभ्यास कर्यो. त्यारेज आ भांगाना अंगे अंग छुटा पाडी क्रमबद्ध योजवानी इच्छा थतां पंडित महाराजनी मददथी प्रकरणबद्ध पुस्तक रूपे योजनो करी हती. आमां नव प्रकरण पाडवामां आव्या छे.
भांगानु पृथक्करण करीए तो तेमांथी पद अने विकल्प एवा बे अंग नीकळे छे, पद ए स्थानना प्रस्तारनी संज्ञा छे अने विकल्प ए जीवना प्रस्तारनी संज्ञा छे. जीव अने तेनां उत्पत्तिस्थान ए बेनो पोतपोतानो संयोग विचारवाथी पद अने विकल्प नीपजे छे अने बेनो परस्परनो संयोग चिंतववाथी भांगानी उत्पत्ति थाय छे. तेथी भांगाना स्पष्टीकरण माटे पहे. ला बे प्रकरणमां पद अने विकल्पनी हकीकत दर्शावी छे. तेमां पण स्थान ए स्थायी अने जीव आगंतुक होवाथी विकल्प पहेला पदनुं चितवन कयु छे. पद प्रकरणमां असंयोगी, द्विक. संयोगी आदि एकेक संयोगिना केटला केटला प्रस्तार थाय, तेमज एकंदर प्रस्तारनी केटली संख्या थाय अने ते प्रस्तार केवी रीते लखाय तेना नियमो यंत्रो अने उदाहरण सहित विस्तारथी विवेचन छे. बीजा प्रकरणमां पण तेवी रीते विकल्प-जीवना प्रस्तारनु चिंतन करवामां आवेल छे. सामान्य रीते पदना अने भांगाना प्रस्तारने पण विकल्प कही शकाय. पण ए बन्नेने जुदा जुदा ओळखाववा माटे आ ग्रंथमां मात्र जीवना प्रस्तारनीज विकल्प संज्ञा राखवामां आवी छे. जीवना प्रस्तार जुदी जुदी रीते पण लखी शकाय छे तेथी ते प्रकरणमां प्रस्तार लखवानी जुदी जुदी रीतो पण दर्शावी छे. छतां मुख्य तो पहेलीज रीत छे. एटले नष्ट उद्दिष्ट पताका वगेरे पहेली रीत उपरज रचायेला योज्या छे.
भांगाना प्रस्तारमां असंयोगी विकसंयोगी आदि एकेक संयोगीनी संख्या केटली केटली थाय ते जाणवा माटे त्रीजु शुचिका प्रकरण छे. भांगानी संख्या जुदी जुदी रीते नीकळी शके छे. तेथी तेमां जुदी जुदी रीतोनुं पण निदर्शन करेलुं छे.