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________________ (२) अर्थ विनय : धनार्थे राजा-शेठ आदि का विनय करना। (३) काम विनय : वासनार्थे स्व-पर स्त्री, वैश्या आदि को अनुकूल करने हेतु विनय करना। (४) भय विनय ः स्वयं से विशेष सामर्थ्यवान का भय रखकर विनय करना। (५) मोक्ष विनय : कर्म मुक्ति हेतु विनय योग्य आत्माओं का विनय करना। इसमें लोकोपचार उचितता रूप है। तीन मोहोदय रूप से अहितकर है। एवं मोक्ष विनय आत्मा को सर्वदुःख मुक्त करने से आत्मोपकार है। मोक्ष विनय के भी पांच प्रकार हैं। (१) दर्शन विनय (२) ज्ञान विनय (३) चारित्र विनय (४) तप विनय इन चारों का आगमोक्त रीति से सेवन करना उनका विनय है। पांचवाँ उपचार विनय तीनों योगों को उचित मार्ग में जोड़ना एवं पूज्य पदों की आशातना न करनी। इस उपचार विनय में काया का विनय आठ प्रकार का, वाचिक चार प्रकार का, मानसिक दो प्रकार का है। उसमें काया से पूज्यों के सामने (१) खड़ा रहना (२) हाथ जोड़ना (३) आसन देना (४) आज्ञा पालन (५) वंदन करना (६) विधिपूर्वक सेवा करनी (७) सामने जाना (८) पहुँचाने जाना। वाचा से (१) परिणामें हितकर (२) मिताक्षर (३) सद्भाव पूर्वक (४) नम्रता युक्त विचार पूर्वक बोलना। मन से अकुशल मन का निरोध धर्म-शुक्ल रूप शुभ मन की उदीरणा। यह उपचारविनय, योग्य आत्माओं का कर्म खपाने हेतु छद्मस्थों को करना है। और केवल ज्ञानियों को स्वयं कर्म खपाने हैं अतः अन्य का औचित्य न करने रूप है। अनाशातना रूप उपचार विनय बावन प्रकार से हैं। (१) तीर्थंकर (२) सिद्ध (३) कुल (४) गण (५) संघ (६) क्रिया (७) धर्म (८) ज्ञान (९) ज्ञानी (१०)आचार्य (११) उपाध्याय (१२) स्थीवर (१३) गणी इन तेरह की अनाशातना, बाह्यभक्ति, हार्दिक बहुमान, और उनकी प्रशंसा इन चार-चार प्रकार से करने से बावन प्रकार होते हैं। उपर दर्शित मोक्ष विनय आत्मा को दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप इन चार में समाधि करवाने रूप है। अर्थात् प्रशस्त अध्यवसाय प्रकट करना उसका कर्तव्य है। अतः विनय अध्ययन में विनय द्वारा समाधि प्राप्त करने का उपदेश है। मान, क्रोध, माया एवं लोभ विनय घातक कहने से ऐसे दोष युक्त व्यक्ति गुरु के पास आसेवन शिक्षा ले न सकने से निर्धन सम गुण में दरिद्री रहता है। गुणाभाव से जीवन निष्फल बनता है। जैसे वांस को फल आवे तब उसका नाश होता है वैसे जीव में प्रकटित दोष, भाव प्राणों का नाश करता है। मानी विनय न करे तब गुरु सारणावारणादि करे तब क्रोधोत्पत्ति होती है। फिर विनय न करने के बचाव में माया सेवन करे, ६४ श्रामण्य नवनीत
SR No.022004
Book TitleSramanya Navneet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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