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करेइ १६९। मणसमाधारणयाए णं भंते० एगग्गं जणेइ त्ता नाणपज्जवे जणयइ त्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निजरेइ १७०/ वयसमाहारणयाए णं भंते० व्यसाहारणं दंसणपनवे विसोहेइ त्ता सुलह बोहियत्तं च निव्वत्तेइ दुल्लहबोहियत्तं णं जीवे चाउरते संसारकंतारन विणस्सइ जहा सूई ससुत्ता, पडिया नविणस्सई तहा जीवे ससुत्ते, संसारे नविणस्सई ॥१०९७॥ कायसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं ज्णयइ? काय समाहारणयाए णं चरित्त पज्जवे विसोहेइ चरित्त पज्जते विसोहित्ता अहक्खाय चरित्तं विसोहेइ, अहक्खाय चरित्तं विसोहित्ता चत्तारि केवली कम्मंसे खवेइ तओ पच्छा सिझाइ - बुझइ मुच्चइ-परिनिव्वाइ सव्व दुक्खाणभंत करे३ ॥६०॥ नाण संपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ ? नाण संपन्नयाए णं सव्वभावाहिगमं जणयइ, नाण संपन्ने अणं जीवे चाउरते संसार कंतारे न विणस्सइ "जहा सूइ ससुत्ता पडिआवि न विणस्सइ! तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ॥" नाणविणयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरविसारए य(अ)संघायणिजे भवद ७३ दंसणसंपन्याए णं भंते० भवमिच्छत्तछेयणं करेइ परं न विझायइ, अणुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पणं संजोएमाणे सम्म भावमाणे विहरइ ७४। चरित्तसंपत्याए णं भंते० सेलेसीभावं जणेइ, सेलेसिं पडिवन्ने अणगारे चत्तारि कम्मसे खवेइ तओ पच्छ। सिन्झइ० ७५। सोहंदियनिग्गहेणं भंते० मणुन्नामणुन्नेसु सद्देसुरागद्दोसणिग्गहं तप्पच्चइयं चणं कम्मं न बंधइ पुव्वबद्धं च निजरेइ ७६ एवं चक्खिदिय ७७ घाणिंदिय० ७८ जिब्मिंदिय० ७९। फासिंदिय० ८० कोहविजएणं भंते!० खंतिं जणेइ कोहवेयणिज कम्मन बंधइ पुव्वनिबद्धंच ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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