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| मोहं वा कसिणं नियच्छई। नरनारि पयहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू॥९॥ छिन्नं सरं भोमं अंतलिक्खं, सुविणं लक्खणं दंडं वत्थुविजी अंगविगारं सरस्स विजयं, जो विजाहिं न जीवई स भिक्खू॥५००॥ मंतं मूलं विविहं विज्जचिंतं, वमणविरेयणधूमनित्तसिणाणीआउरे सरणं तिगिच्छियंच, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू॥१॥खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहणभोई य विविही सिप्पिणो नो तेसिं वयइ सिलोगों, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू॥२॥ गिहिणो जे पव्वइएण दिहा, अप्पव्वइएण व संथुया हविजा। तेसिं इहलोयफलट्टयाए, जो संथवं न करेइ स भिक्खू॥३॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसिंग अदए पडिसेहिए नियंठे, जे तत्थ ण पओसई स भिक्खू॥४॥ जंकिंचाहारपाणगं विविहं, खाइमसाइमं परेसिं लद्धं जो तं तिविरुण नाणुकंपे, मणवयकायसुसंवुडे जे स भिक्खू॥५॥ आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं सोवीर जवोदगं चोनो हीलए पिंडं नीरसं तु, पंतकुलाणि परिव्वए जे स भिक्खू॥६॥ सहा विविहा भवंति लोए, दिव्या माणुसया तहा तिरिच्छ।। भीमा भयभेरवा उराला, जो सुच्चा ण बिहिज्जई स भिक्खू॥७॥ वायं विविहं समिच्च लोए, सहिए खेयाणुगए अ कोवियप्पा। पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अविहेडए स भिक्खू॥८॥असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइंदिओ सव्वओ विष्पमुके। अणुक्कसाई लहु अपभक्खी, चिच्चा गिहं एगचरे स भिक्खू५०९॥ सभिक्खुअज्झ्यणं १५॥
सुअं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता जे भिक्खू सुच्चा निसम्म ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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