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ण हु जिणे अज्ज दीसड़, बहुमए दीसड़ मग्गदेसिए । संपइ ने आउए पहे, समयं० ॥ ३२० ॥ अवसोहिय कंटगापहं, ओइन्नोऽसि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं० ॥ १ ॥ अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए, समयं० ॥२॥ तिष्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ? | अभितुर पारं गमित्तए, समयं० ॥३ ॥ अकलेवर सेणिमूसिया, सिद्धिं गोयम! लोयं (य) गच्छसि। खेमं च सिवं अणुत्तरं, समयं ० ॥४॥ बुद्धे परिणिव्वुए चरे, गामगए नगरे व संजए। संतिमग्गं च वूहए, समयं गोयम! मा पमाए ॥५॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहियमद्वपदोवसोहियं । रागं दोसं च छिंदिया, सिद्धिगई गए गोयमे ॥ ३२६ ॥ त्ति बेमि, दुमपत्तयज्झयणं १० ॥
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संजोगा विप्पमुकस्स, अणगारस्स भिक्खुणो । आयारं पाउक्करिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे ॥७॥ जे यावि होइ निव्विज्जे, थद्धे लुद्धे अनिग्गहे । अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहस्सुए ॥८॥ अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा ण लब्भः । थंभा कोहा पमाएणं, रा(रोगेणालस्सएण ये॥९॥ अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खासीलेत्ति वुच्चा । अहस्सिरे सयादंते, न य मम्ममुयाहरे ॥ ३३० ॥ नासीले ण विसीले, ण सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलेत्ति वुच्चइ ॥१॥ अह चोद्दसहिं ठाणेहिं, वट्टमाणो उ संजए। अविणीए वुच्चती सो उ, णिव्वाणं च ण गच्छइ ॥ २ ॥ अभिक्खणं कोही भवइ, पबंधं च पकुव्वइ । मित्तिज्जमाणो वमति, सुयं लधूण मज्जइ ॥३॥ अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुम्पति । सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासड़ पावगं ॥४॥ पइण्णवाई ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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