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||जंतू, पच्चुप्पण्णपरायणेोअएव्व आगयाऽऽएसे (कंखे), मरणंतमि सोयति॥ तओ आउ परिक्खीणे, चुत ओ देहा विहिंसगा।
आसुरियं दिसंबाला, गच्छंति अवसा तम॥७॥ जहा कागिणीए हेडं, सहस्सं हारए नरो। अपत्थं अंबगं भोच्चा, राया रज्जंतु हारए॥८॥ एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए। सहस्सगुणिया भुजो, आउँ कामा य दिव्विया॥९॥ अणेग वासा नव्या, जा सा पण्णवओ ठिई जाई जीयंति( हारेंति) दुमेहा, जाण(ऊणे) वाससयाउए॥१९०॥ जहा य तिण्णि वणिया, मूलं घेत्तूण निग्गया। एगोऽत्थ लभते लाभं, एगो मूलेण आगओ॥१॥ एगो मूलंपि हारित्ता, आगओ तत्य वाणिओ ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मेवि जाणह॥२॥ माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवामूलच्छेएण जीवाणं, नरगतिरिक्खत्तणं धुवं॥३॥ दुहओ गती बालस्स, आवती वहमूलिया। देवत्तं माणुसतंच, जं जिए लोलुआसढे ॥४॥ ततो जिए सई होइ, दुविहं दुग्गतिं गते दुल्लहा तस्स उभ्मज्जा, |अद्धाए सुचिरादवि॥५॥ एवं जियं सपेहाए, तुलिया बालं च पंडिया मूलियं ते पविस्संति, माणुसं जोणिमिति जो॥ मायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहि सुव्वया। उविति माणुसं जोणी, कम्मसच्चा(त्ता हु पाणिणो॥७॥ जेसिं तु विउला सिक्खा, मूलियते
अतिच्छिया( अतिट्टिया)। सीलवंता सविसेसा, अहीणा जंति देवयं॥॥ एवं अदीणवं भिक्खू, अगारि च विजाणिया। कह। जिच्चमेलिक्खं, जिच्चमाणो न संविदे॥९॥जहाकुसग्गे उदयं, समुद्देण समं मिणोएवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए॥२००॥
कुसग्गमित्ता इमे कामा, सनिरुद्धंमि आउए।कस्स हे पुरा काउं, जोगखेमं न संविदे?॥१॥ इह कामानियट्टस्स, अत्तडे अवरज्झति। In श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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