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पविभत्ती, कासवेणं पवेइया। ते, (२) मे उदाहरिस्सामि, आणुपुट्विं सुणेह मे॥९॥ दिगिंछापरिंगते देहे (छापरियावेणं), तवस्सी | भिक्खु थामवीन छिंदे न छिंदावए, न पए न पयावए॥५०॥ कालीपव्वंगसंकासे, किसे धमणिसंतए।मत्त मायनोऽसणपाणस्स, अदीणमणसो चरे॥१॥ तओ पुट्ठो पिवासाए, दुगुंछी लज्ज(द्ध संजमो सीओदगंण सेवेजा, वियडस्सेसणं चरे॥२॥ छिनावाएसु पंथेसुं, आरे सुपिवासिए। परिसुक्कमुहेऽदीणे, सव्वतो य परिव्वए (तं तितिक्खे परीसह)॥३॥ चरंतं विरयं लूहुं, सीयं फुसइ एगया। नाइवेलं विहनिजा, पावदिट्ठी विहनइ (मुणी गच्छे, सोच्चाणं जिणसासणं)॥४॥ण मे णिवारणं अत्थि, छवित्ताणं न विजइ। अहं तु अग्गि सेवामि, इइ भिक्खू न चिंतए।५॥ उसिणपरितावेण, परिदाहेण तजिओ। प्रिंसु वा परितावेणं, सायं ण परिदेवए॥६॥ उपहाहितत्तो मेहावी, सिणाणं नाभि (णो वि) पत्थए। गायं न परिसिंचेजा, न विजि( वीइ )जाय अप्पयं ॥७॥ पुट्ठो य दसमसएहिं, समरे व महामुणी। नागो संगामसीसे व, सूरे अभिभवे परं॥८॥ण संतसे ण वारिज्जा, मणंपिणो पउस्सए। उवेहे नो ह्रणे पाणे, भुंजते मंससोणिए॥९॥ परिजुनहिं वत्थेहिं, होक्खामित्ति अचेलए। अदुवा सचेलए होक्खं, इइ भिक्खू न चिंतए॥६०॥ एगया अचेलए (अचेलए सयं) होई सचेले यावि एगया। एयं धम्महियं गच्चा, नाणी णो परिदेवए॥१॥ गामाणुगामं रीयंत, अणगारमकिंचणी अरई अणुप्पविसे, तं तितिक्खे परीसहं ॥२॥ अरई पिटुओ किच्चा, विरओ आयरक्खिए। धम्मारामे निरारंभे, उवसंते मुणी चरे॥३॥ संगो एस मणुस्साणं, जाओ लोगंसि इथिओ। जस्स एया परिण्णाया, सुकडं (२) तस्स सामण्णं॥४॥ ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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