________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
होइ पडिसेवी। एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ॥८॥ सत्थागहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो यो अणयारभंडसेवी जम्भणमरणाणि बंधंति॥९॥ इति पाउरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुए। छत्तीसं उत्तझाए, भवसिद्धीयसंमए॥१६४०॥ त्ति बेमि, जीवाजीवविभत्ती ३६॥ सूत्राणि॥८८॥ इति श्री उत्तराध्ययनं सूत्रं संपूर्ण ॥ प्रभु महावीरस्वामीनी परंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा-चा- ल् प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता पभोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक, सैलाना नरेश प्रतिबोधक, देवसूर तपागच्छ, समाचारी संरक्षक, आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्यदेवेश् श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ प्रतापी-सिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म. सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्य विजेतामालवोध्धारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगम विशारद, नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी म. सा. शिष्य शासन प्रभावक, नीडर वक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्ति रसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लधुगुरुभ्राता प्रवचन प्रभावक पू.आ. श्री हेमचन्द्रसागर म.सा. शिष्य पू. गणी श्री पूर्णचन्द्रसागरजी म. सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं. २०५८ /५९/६० वर्ष दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी प्रकाशन दिने पू. सागरजी म. संस्थापित प्रकाशन कार्यवाहक जैनानंद पुस्तकालय, सुरत द्वारा प्रकाशित करेल छे...
॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ।।
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal