________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatim.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandi उ भिक्खुस्स, तारिसंमि उक्स्सए। दुक्कराई निवारे(तु धारेउ), कामरागविवड्ढणे॥७॥सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इको पइरिक्के पकडे वा, वासं तत्थ भिरोयए॥८॥ फासुयंमि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए। तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए॥९॥ न सयं गिहाई कुविजा, नेव अन्नेहिं कारए। गिहम्मसमारंभे, भूयाणं दिस्सए वहो॥१३६०॥ तसाणं थावराणं च, सुहुमाणं बायराण यो तम्हा गिहसमारंभं, संजओ परिवज्जए॥१॥ तहेव भत्तपाणेसु, प्यणे प्रयावणेसु यो पाणभूयदयद्वाए, न पए ण पयावए ॥२॥ जलधननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया। हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न प्यावए॥३॥ विसप्पे सव्वओधारे, बहपाणविणासणे नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई नदीवए|४|| हिरण्णं जायरूवंच, मणसाविन पत्थए समलिट्ठकंचणे भिक्खू, विरए क्यविक्कए॥५॥ किणंतो कइओ होइ, विक्किणंतो य वाणिओ। क्यविक्कयंमि वढ्तो, भिक्खू हवइ न तारिसो॥६॥ भिक्खियव्वं न केयव्वं, भिक्खुणा भिक्खवित्तिा। कयविकओ महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा॥७॥ समुयाणं उंछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिंदियोलाभालाभंमि संतुढे, पिंडवायं चरे मुणी ॥८॥अलोलो न रसे गिद्धो, जिब्भादतो अमुच्छिओ। न रसट्टाए @जिज्जा, जवणढाए महामुणी॥९॥ अच्चणं रयणं चेव, वंदणं पूअणं तहा। इड्ढीसकारसम्माणं, मणसावि न पत्थए॥१३७०॥ सुकं झाणं झियाइज्जा, अणियाणे अकिंचणे। वोसढकाए विहरिन्जा, जाव कालस्स पज्जओ॥१॥ निजूहिऊण आहारं, कालधमे उवहिए। चइऊण माणुसं बुदि, पहू दुक्खा विमुच्चइ॥२॥ निम्ममो निरहंकारो, वीयराओ अणासवो। संपत्तो ॥ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रं ॥
| ९८
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal