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| पढम निहोस दोसु जयणाए। नवरं पुण णाणत्तं भावासनाए वोसिरणं ॥९॥ अणावायमसंलोयं अणवायालोय ततिय विवरीयो
आवातं संलोगं पुव्युत्ता थंडिला चउरो ॥३०८॥ भा०अणावायमसंलोगं निहोस बितियचरिम जयणाए। पउरदवकुरुकुयादी पत्तेयं मत्तगो चेव १६२०॥ तइएवि य जयणाए नाणत्तं नवरि सहकरणमि। भावासत्राए पुण नाणत्तमिणं सुणसु वोच्छं ॥१॥ जदि पढमन तरेजा तो वितियं तस्स असइए तइयो तस्स असई चउत्थे गामे दारे य रत्थाए ॥२॥साही पुरोहडे वा उवस्सए मत्तगंमि वाणिसिरे अच्चुकडंमि वेगे मंडलिपासंमि वोसिरह ॥३॥ तिण्णि सल्ला महाराय!, अस्सि देहे पइडिया। वायमुत्तपुरीसाणं, पत्तवेग न पारए॥४॥ राया विजमि मए विजसुयं भणइ किंच ते अहियं?। अहियंति वायकम्मे विजे हसणा य परिकहणा॥५॥ एसा परिवणविही कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता। सामायारी एत्तो वुच्छं अपक्खरमहत्या ॥ सनातो आगतो चरमपोरिसिं जाणिऊण
ओगाढ़ी पडिलेहणमप्पत्तं नाऊण करेइ सझाय॥७॥ पुबुद्धिो य विही इहपि पडिलेहणाइ सो चेवाजं एत्थं नाणत्तं तमहं वुच्छं समासेणं॥८॥ पडिलेहगा ३ दुविहा भत्तट्ठियएयरा य नायव्या। दोण्हविय आइपडिलेहणा 3 मुहणंतग सकाय॥९॥ तत्तो गुरू परित्रा गिलाणसेहाति जे अभत्तही। संदिसह पाय मत्ते य अपणो पट्टगं चरिम॥३०॥ पट्टग मत्तय सयमोग्गहो य गुरुमाइया अणुनवणा। तो सेस पायवत्थे पाउँछणगं च भत्तही॥१॥ जस्स जहा पडिलेहा होइ कया सो तहा पढइ साहू। परियट्टे व पयओ करेइ वा अनवावा ॥२॥ भागवसेसाए चरिमाए पडिकमित्तु कालस्सोउच्चारे पासवणे गणे चवीसई पेहे ॥३॥ अहियासिया ॥श्रीओपनियुक्तिसूत्र।।
पू. सागरजी म. संशोधित
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