________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दारं जा पडिलेहे तणभए दोण्णि सावए तिण्णिा जइ य चिरं तो दारे अण्णं ठावेत्तु पडिअइ॥८॥ आगम्म पडिक्कतो अणुपेहे जाव चोहसवि पुवे। परिहाणि जा तिगाहा निहपमाओ जढो एवं॥९॥ अतरंतो व निवजे असंथरंतो य पाउणे एक। गहभदिटुंतेणं दो तिण्णि बहू जह समाही ॥२१०॥ वसहित्तिदा। दुविहो य विहरियाविहरिओ 3 भया 3 विहरिए होइ। संदिट्ठो जो विहरितो अविहरिअविही इभो होइ॥१॥ अविहरि विहरिओ वा जइ सड्ढो नत्थि नत्थि निओगो। नाए जइ ओसण्णा पविसंति तओ य पण्णरस॥९५॥ भा० संविगमणुण्णाए अइंति अहवा कुले विरंचंति। अण्णाउंछं व सहू एमेव य संजईवगे॥६॥ एवं तु
अण्णसंभोइयाण संभोइयाण ते चेवा जाणित्ता निब्बंधं वत्थव्वेणं 3 पमाणं॥७॥ असइ वसहीए वीसुं राइणिए वसहि | भोयणागम्म। असहू अपरिणया वा ताहे वीसुं सहूवियरे॥८॥ तिण्हं एक्केण समं भत्तट्ठो अपणो अवड्ढं तु। पच्छ। इयरेण सम आगमणविरेगु सो चेव॥९॥ चेइयवंद निमंतण गुरूहिं संदिट्ट जो वऽसंदिट्ठो। निब्बंध जोगगहणं निवेय नयणं गुरुसगासे॥१०॥ अविहरियमसंदिट्ठो चेइय पाहुडियमेत गेण्हंति। पाउगपउरलंभे नऽम्हे किं वा न भुंजंति?॥१॥ गच्छस्स परीमाणं, नाउ घेत्तुं तओ निवेयंति। गुरुसंघाडग इयरे लद्धं नेयं गुरुसमीव॥२॥ भा० मा वच्चह गिण्ह गुरुजोग॥ एवइ वा गिण्हह पजत्तं वा नियत्तह य भंते! अणिवेइए अ गुरुणो हिंडताणं इमे दोसा॥०१५॥ दरहिंडिय वुड्ढाई आगंतु समुहिस्संति जं किंचिो दवविरुद्धं च
क्यं गुरूहि जंकिंचि वा भुत्तं ॥१६५०॥ एगागिसमुद्दिसगा भुत्ता 3 पहेणएण दिटुंतो। हिंडणदव्वविणासो निद्धं महरं च पुवं | ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only