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भिक्खायरि अंतरा खेत्ते ॥४॥ दियराउऽपच्चवाए य जाणई सुगमदुग्गमे काले। भावे सपक्खपरपक्खपेल्लणा निण्हगाईया॥७५॥ || भाध्या सुत्तत्थं अकरिता भिक्खं काउं अइंति अवरहे। बिइयदिणे सझाओ पोरिसिअद्धाइ संघाडो॥५॥खेत्तं तिहा करेत्ता दोसीणे नीणिअंमि अ वयंति। अण्णो लद्धो बहुओ थोवं दे माय रूसेजा॥६॥ अहव ण दोसीणं चिअ जायामो देहि दहि घयं खीरें। खीरे घयगुलपेजा थोवं थोवं च सव्वत्थ॥७॥ मझण्हि परभिक्खं परिताविअपिज्जजूसपयकढिी ओभट्ठमणोभटुं लब्भइ जं| जत्थ पाउग्गं॥८॥ चरिमे परितावियपेज्जजूस आएस अतरणढाए। एक्केवगसंजुत्तं भत्तटुं एकमेक्कस्स॥९॥ ओसह भेसजाणि य| कालं च कुले य दाणमाईणिो सग्गामे पेहित्ता पेहंति ततो परग्गामे॥१५०॥ चोयगवयणं दीहं पणीयगहणे य नणु भवे दोसा। जुज्जइ तं गुरुपाहुणगिलाणगट्ठा न दप्पट्टा॥१॥ जइ पुण खद्धपणीए अकारणे एक्कसिपि गिण्हेजा। तहिअंदोसा तेण उ अकारणे खद्धनिद्धाइं॥२॥ एवं रुइए थंडिल वसही देउलिअसुण्णगेहमाईणि पाओगमणुण्णवणा वियालणे तस्स परिकहणा॥३॥ सिंगक्खोडे कलहो ठाणं पुण नेव (प्र० नत्थि) होइ चलणेसुं।अहिठाणि पोट्ट रोगो पुच्छंमि य फेडणंजाण॥७६॥ भा०। मुहमूलंमि य चारी सिरे य कहे य पूयसकारो।खंधे पट्टीए भरो पोर्टेमि यथावओ वसहो॥७७॥ उद्देसणुपुवीए वुच्चत्थं पेहमाणिणो दोसा। जे य गुणा पढमाए ते वाघायंमि सेसासु॥५०५॥ परन्न पाण पढमा बीयाए भत्तपाण न लहंति। तइआ उवगरणहरी नत्यि चउत्थीइ सझाओ॥६॥ पंचमिआए संखडि छट्ठीइ गणस्स भेयणं जाणो सत्तमिआ गेलनं मरणं पुण अट्ठमी बिंति॥७॥ बुद्धीए पुव्वमुहं श्री ओपनियुक्तिसूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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