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जो वा जंभि पसत्तो वणइ तहिं पुट्ठपुट्ठो वा ॥४॥ दाणं न होइ अफलं पत्तमपत्तेसु सन्निजुज्जंती इय विभणिएडवि दोसा पसंसओ किं पुण अपत्ते ? ॥ ५ ॥ भणड़ य नाहं वेज्जो अहवाऽवि कहेइ अप्पणो किरिया अहवावि विज्जयाए तिविह तिमिच्छा मुणेयव्वा ॥६॥ भिक्खाइ गओ रोगी किं विज्जोऽहंति पुच्छिओ भगइ। अत्थावत्तीए क्या अबुहाणं बोहणा एवं॥७॥ एरिसयं चिय( वा )दुक्खं भेसज्जेण अमुगेण पडणं मे। सहसुम्पन्नं व रुयं वारेमो अट्टमाईहिं ॥८ ॥ संसोधण संसमणं नियाणपरिवज्जणं च जं तत्थ । आगंतु धाउखोभे य आमए कुणइ किरियं तु ॥ ९ ॥ अस्संजमजोगाणं पसंघणं कायघाय अयगोलो। दुब्बलवग्घा हरणं अच्चुदये गिण्हणुड्डाहे ॥ ४६० ॥ हत्थकम्प गिरिफुल्लिय रायगिहं खलु तहेव चंपा यो कडघयपुन्ने इट्टग लड्डुग तह सीहकेसरए ॥१॥ | विज्जातवप्यभावं रायकुले वाऽवि वल्लभत्तं से। नाउं ओरस्सबलं जो लब्भइ ( देइ भया ) कोहपिंडो सो ॥ २ ॥ अन्नेसि दिज्नमाणे जायंतो वा अलद्धिओ कुप्पे । कोहफलंभिऽवि दिट्ठे जो लब्भइ कोहपिंडो सो ॥३ ॥ करडुयभत्तमलद्धं अन्नहिं दाहित्य एव वच्चतो। थेरा भोयण तइए आइक्खण खामणा दाणं॥४॥ उच्छाहिओ परेण व लद्धिपसंसाहिं वा समुत्तइओ । अवमाणिओ परेण य जो | एसइ माणपिंडो सो ॥५॥ इट्टगछणंमि परिपिंडियाण उल्लाव को णु हु पगेव । आणिज्ज इट्टगाओ ? खुड्डो पच्चाह आणेमि ॥६॥ जइविय ता पज्जत्ता अगुलघयाहिं न ताहिं णे कज्जं । जारिसियाओ इच्छह ता आणेमित्ति निक्खतो ॥७॥ ओहासिय पडिसिद्धो भाइ अगारिं अवस्सिमा मज्झ । जइ लहसि तो तं मे नासाए कुणसु मोयंति (सा आह ) ॥८॥ कस्स घर पुच्छिऊणं परिसाए ॥ श्री पिण्डनिर्युक्ति सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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