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वंदणगढपविठ्ठा देइ तयं पट्ठिय नियत्ता॥१॥ नीयं पहेणगं मे नियगाणं निच्छियं व तं तेहिं। सागरि सयझियं वा पडिट्ठा संखडे रुद्वा ॥२॥ एयं तु अणाइन दुविहंपिय आहडं समक्खायो आइपिय दुविहं देसे तह देसदेसे य॥३॥ हत्थसयं खलु देसो आरेणं होइ देसदेसो यो आइनमिविति( ण्णे तिन्नि गिहा तं चिय उवओगपुव्वागा (काऊणं)॥४॥ परिवेसणपतीए दूरपवेसे य घंधसालगिहे। हत्थसया आइन्नं गहणं परओ उ पडिकुटुं॥५॥ होइ पुण देसदेसो अंतो गिह सा न दीसए जत्थी उक्खेवाई तत्थ उसोयाई देइ उवओगं॥३ प्र०॥ उक्कोसंमझिम जहनगंच तिविहं तु होइ आइन्नी करपश्यित्त जहन्नं सयमुक्कस मज्झिम सेसं॥६॥ | पिहिउब्भिन्नकवाडे फासुय अफासुए य बोद्धवे।अफासुय पुढविमाई फासुय छगणाइदद्दरए॥७॥ उब्भिन्ने छक्काया दाणे कयविका य अहिगरणी ते चेव कवाडंमिवि सविसेसा जंतभाईसु॥८॥ सच्चित्तपुढविलितं लेलु सिलं वाऽवि दाउभोलिती सच्चित्तपुढविलेवो चिरंपि उदगं अचिरलित्ते॥९॥ एवं तु पुव(णो)लित्ते काया उल्लिंपणेऽवि ते चेव(पाणओ हुज्जा) तिम्मे उवलिंपड़ जमुई वावि तावे॥३५०॥ जह चेव पुव्वलित्ते काया दाउं पुणोऽवि तह चेव उवलिप्यंते काया मुइअंगाई नवरि छटे॥१॥ परस्स तं देइ सए व गेहे, तेलं व लोणं व घयं गुलं वा। उग्घाडिए तमि करे अवस्सं, स विक्कयं तेण किणाइ अन्न॥२॥ दाणक्यविक्कया | चेव होइ अहिगरणमजयभावस्सो नियंति जे य तहियं जीवा मुइयंगमूसाई॥३॥ जहेव कुंभाइसु पुव्वलित्ते, उब्भिज्जमाणे य हवंति काया। ओलिंपमाणेवि तहा तहेव, काया कवाडंमि विभासियव्वा॥४॥घरकोइलसंचारा आवत्तण पीढगाइ हेढुवरिरी निते श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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