________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सालीमाई अवडे फ्ले र सुंठाइ साइमं होइ। तस्स कडनिद्वियंभी सुद्धमसुद्धे य चत्तारि॥१॥ कोदवरालगगामे वसही रमणिज्ज | | भिक्ख सम्झाए। खेत्तपडिलेहसंजय सावयपुच्छुज्जुए कहा॥२॥ जुज्जइ गणस्स खेत्तं, नवरि गुरूणं तु नस्थि पाउगो सालित्ति कए रुंपण परिभायण निययगेहेसु॥३॥ वोलिता ते व अन्ने वा, अडता तत्थ गोय। सुगंति एसणाजुत्ता, बालादिजणसंकहा॥४॥ एए ते जेसिमो रद्धो, सालिकूरो घरे धरे। दिन्नो वा सेसयं देभि, देहि वा बिंति वा इभ५॥ थक्के थक्कावडियं अभत्तए सालिभत्तयं जायी मझय पइस्स भरणं दियरस्सय से मया भज्जा॥६॥ चाउलोदगंपि से देहि, सालीआयामकंजियो किमयंति क्यं? नाउं, वजंतऽन्नं वयंति य॥७॥ लोणागडोदए एवं, खाणित्तु महरोदगी दक्किएणऽच्छते ताव, जाव साहुत्ति आगया॥८॥ककडिय अंबगा वा दाडिम रखा य बीयपूराईखाइम हिगरणकरणति साइमं तिगडुगाईय॥९॥असणाईण चउण्हवि आमं जं साहगहणपाउगो तं निहित वियाणसु उवक्खडं तू कडं होइ॥१७०॥ कंडियतिगुणुकंडा उ निहिया णेगदुगुणकंडा उणिट्ठियकडो उ कूरो आहाकम्म दुगगमाह॥१॥ छायपि विवजंती केई फलहेउगाइवुत्तस्सा तं तु न जुज्जइ जम्हा फलंपि कप्पं बिइयभंगे॥२॥ परपच्चझ्या छाया नावे सा रुक्खोव्व वट्टिया कत्ता। नट्ठच्छाए 3 दुमे कप्पइ एवं भयंतस्स॥३॥ वड्ढइ हायइ छाया तत्थि(च्छि )वं पूइयंपिव न कम्पोन य आहाय सुविहिए निव्वत्तयई रविच्छाय॥४॥ अघणघणचारिगगणे छाया नट्ठा दिया पुणो होइ। कप्पइ निरायवे नाम |
आयवे तं विवज्जे (जति)॥५॥ तम्हा नएस दोसो संभवई कम्मलक्खणविहूणो तंपिय हु अइघिणिल्ला वज्जेमाणा अदोसिल्ला॥६॥ || श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only